नाचने के लिए एक ढोल वाले को बुलाया गया था। उस ढोल वाले के साथ एक 12 वर्षीय बालक भी था। शायद वह अपने पिता के साथ आया था। हम लोग देख रहे थे कि वह बालक लगातार एक घंटे से ढोल बजा रहा था। बजाते-बजाते उसके हाथ थक गए थे।
उसका मासूम चेहरा पसीने से भीग गया था। खाने की खुशबू से सजी टेबल पर बार-बार उसकी नजरें जा रही थीं। लोग झाूम-झाूमकर उससे ढोल बजवा रहे थे। नाच-गाने के साथ-साथ खाने का लुत्फ उठा रहे थे। बालक का मुंह पानी के लिए सूखा जा रहा था। शायद अब वह कुछ ज्यादा ही थक चुका था। मुझो उसे देख कर बड़ी दया आई। मैंने अपनी सहेली से पूछा, ‘इस छोटे से बच्चे को क्यों लाए हैं? क्या इसके पिता को कोई और नहीं मिला? इस बच्चे को कुछ खाने को दे दो। बेचारा भूखा लग रहा है। वह तपाक से बोली, ‘अरे छोड़ स्पेशल होटल से खाना आया है, आठ सौ रुपए की प्लेट है, ऐसे कैसे दे दूं!
मैंने देखा लोग जूठन छोड़ रहे थे। वह बच्चा लगातार पसीना बहाए ढोल बजा रहा था। मुझो आज दिखावे की दुनियाँ में इंसानियत मरती साफ नजर आ रही थी। मैंने अपनी प्लेट लगाकर उस बच्चे को दे दी। उसने झाट ढोल नीचे रख मेरी ओर सवालिया नजरों से देखने लगा। मैंने मुस्कुराकर उसे प्लेट लेने का इशारा किया।
उसके पिता मुझो बच्चे को प्लेट देता देख मुस्कुराकर और तेज ढोल बजाते जा रहे थे। आते वक्तदुल्हन के हाथ में उम्मीद से ज्यादा का लिफाफा नेक स्वरूप दिया व सहेली से विदा ली। मेरा मन मासूम के तृप्त होते चेहरे को देखकर ही भर चुका था। मेरी रईस सहेली मुझो देख निरुत्तर हो गई।