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कहानी-मौका या जिम्मेदारी

locationजयपुरPublished: Apr 17, 2021 01:25:16 pm

Submitted by:

Chand Sheikh

उसे मां बाप का पता नहीं मालूम था पर वो चल पड़ी थी उनकी खोज में। गाड़ी बंगले के अंदर गई। सुमन बाहर निकली। मोहित ने एक कमरे की तरफ इशारा किया तो सुमन चुपचाप कमरे में जाकर बैठ गई।

कहानी-मौका या जिम्मेदारी

कहानी-मौका या जिम्मेदारी

डॉ. अमिता सक्सेना

तपती, सूनी, खाली सड़क मानों किसी बदली के इंतजार में बैठी हो। इस समय किसी राहगीर का आना तो बहुत मुश्किल था। सड़क एक जगह रहती है पर मंजिल पर सबको पहुंचा देती है। बदली से बंूद न बरसी पर किसी के आंसू ने सड़क को भिगो दिया। दोपहर से शाम हुई दो -चार गाड़ी इस रास्ते से गुजरी पर उस लड़की को सबने अनदेखा कर दिया जान कर या अनजाने में कौन कहे? सड़क को लगा आज भी किसी अकेली लड़की की मासूमियत छिन जाएगी। आज भी अकेली लड़की को कोई मौका समझोगा और एक बार फिर अकेली लड़की की कहानी दर्द से लिखी जाएगी।
तभी एक काफी बड़ी गाड़ी रुकी और ड्राइवर ने पूछा ‘कहीं जाना है?’ लड़की को तनिक सुध आई तो वह मुश्किल से बोली, ‘शहर तक।’ ‘चलो बैठो’ ड्राइवर के इतना कहते ही लड़की अपनी पोटली लेकर गाड़ी में बैठ गई।
हर रास्ते की मंजिल नहीं होती और हर मंजिल मनचाही नहीं होती। ड्राइवर के मन में जो था उस लड़की के सामने आने ही वाला था। ड्राइवर ने कुछ जानकारी ले ली। मालूम चला उस लड़की का नाम सुमन है और गांव में मजदूरी न मिलने पर वो अपना कर्जा न उतार सके तो बेटी को भगवान भरोसे छोड़ कर शहर भाग गए।
सुमन को मां और बाप दोनों एक लग रहे थे। जनम तो ये सोच कर दिया कि जो पेट देगा वो निवाला भी देगा। अब उसे इस हाल में छोड़ गए जहां वो सबके लिए सिर्फ एक लड़की है।
उसे मां बाप का पता नहीं मालूम था पर वो चल पड़ी थी उनकी खोज में। गाड़ी एक बड़े से बंगले के अंदर गई। सहमी सी सुमन बाहर निकली। मोहित ने एक कमरे की तरफ इशारा किया तो सुमन चुपचाप कमरे में जाकर बैठ गई।
जो बातें बताई नहीं जाती वही तेजी से फैलती हंै। शाम के अंधेरे से पहले आस- पास में खुसुर फुसुर शुरू हो गई। एक बूढ़ी काकी ने सब पता किया और सुमन को खाना और दूसरी साड़ी दी। तब तक मोहित आ गया। ये बड़े साहब का सर्वेंट क्वार्टर था जहां सभी गरीब थे लेकिन एक दूसरे की पीड़ा को समझा सकते थे। किसी की मदद नहीं पाते लेकिन साथ खड़े रहते थे। सुमन भी उसी बंगले में काम करने लगी। समय निकाल कर मां बाप को भी ढूंढ़ती पर भविष्य तो अधर में था। एक दिन कोहराम मच गया जब मालिक के बेटे ने सुमन के साथ बदतमीजी करने की कोशिश की। बात खुलने पर सारा इल्जाम सुमन पर लगा दिया जिसका कोई सहारा नहीं उसके चरित्र पर लांछन लगाना कौन सा बड़ा काम है?
अब सबको सुमन की चिंता होने लगी पर नौकरी को किसी अनजान लड़की के लिए दांव पर नहीं लगाया जा सकता। मोहित के दोस्त की पत्नी सिलाई करती थी। उसको हाथ बटाने के लिए किसी की जरूरत थी। सुमन को वहीं काम मिल गया। अब वो ठीक से खाने और पहनने लगी।
एक दिन सुमन कपड़े देने गई तो किसी ने उसे पुकारा। ये वही परिचित आवाज थी जिसको सुनने के लिए वो बचपन में छिपती थी। उसने पलट कर देखा तो मां थी। पर जल्दी ही बाप की मौत का समाचार सुन वो फिर उदास हो गई।
मां जानती थी उसकी बेटी को कंधे की जरूरत है। बाप रहा नहीं,भाई कोई था नहीं। मां की अनुभवी आंखों ने मोहित का प्रेम पढ़ लिया। बस मौका देख मां ने काकी से दोनों की शादी की बात छेड़ दी।
आज सुमन अपने पति मोहित और बेटी मन्नू के साथ जेठ की दोपहरी में खाली, सूनी सड़क से गुजर कर वापस अपने गांव जा रही है। सड़क भी कह रही है अकेली लड़की को मौका समझने वाले तो बहुत देखे पर अकेली लड़की की जिम्मेदारी उठाने वाले आज भी हैं।
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