कोविड-19 की दूसरी लहर में राजस्थान में दवाओं की किल्लत और कालाबाजारी को देखते हुए भी राज्य सरकार गंभीर बीमारियों की दवाओं के निर्माण की आत्मनिर्भरता की ओर कदम नहीं बढ़ा पा रही है। प्रदेश में इस समय दवा निर्माण से जुड़ी करीब 300 कंपनियां हैं, लेकिन इनमें गंभीर बीमारियों का निर्माण करने वाली कंपनियां नहीं के बराबर हैं।
प्रदेश में कोविड उपचार में काम आने वाली करीब आधा दर्जन दवाइयों व इंजेक्शन की भारी किल्लत है। ये दवाइयां अन्य राज्यों या विदेशों से मंगवानी पड़ रही हैं। रेमडेसिविर को लेकर खुद राज्य सरकार यह कह चुकी है कि जिन राज्यों में यह कंपनियां हैं, वहां से इनके आने देने में बाधाएं खड़ी की जा रही हैं। इस समय किल्लत की बात करें तो प्रदेश में रेमडेसिविर इंजेक्शन, टोसीलीजुमेब इंजेक्शन, यूनिलेस्टिन इंजेक्शन, मेथिल प्रेडनिसोन इंजेक्शन और टेबलेट, एनोक्सेपेरिन इंजेक्शन, पिपेरक्लिन और टेजोबेक्टम इंजेक्शन और लिफोजेड एंबोटेरेसिन बी इंजेक्शन की मारामारी है।