जेल में लगे ऐसे दाग, कार्मिक विभाग हुआ चुप
जयपुरPublished: Sep 29, 2018 01:17:00 am
दोषी मिले थे 21 जेल अफसर-कर्मचारी
जेल में लगे ऐसे दाग, कार्मिक विभाग हुआ चुप
जयपुर. राज्य के कार्मिक विभाग का हाल देखिए, 21 दागी जेल अधिकारियों और कर्मचारियों की फाइलें वर्षों से अटकाए बैठा है। कार्रवाई करने की बजाय जांच के नाम पर फाइलें शासन सचिवालय में अटकी हुई हैं और दागी अफसर-कार्मिक आराम से रिटायर हो रहे हैं।
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ऐसे-ऐसे दाग, फिर भी बाल तक बांका न हुआ
1. बीकानेर जेल में तिहरा हत्याकांड : बीकानेर जेल में 24 जुलाई 2014 को कुख्यात गैंगस्टर आनंदपाल सिंह और साथी बलवीर बानूड़ा पर दूसरे गुट के जयप्रकाश और रामपाल जाट ने गोलियां दागीं। गोली लगने से बलवीर मारा गया। जयप्रकाश व रामपाल को आनंदपाल और उसके साथियों ने पीटकर मार डाला। जेल प्रशासन की जांच में जेल अधीक्षक सुरेंद्र सिंह, उप कारापाल शैलेंद्र सिंह, सहायक कारापाल योगेंद्र सिंह, महावीरप्रसाद, मुख्य प्रहरी मोहम्मद शब्बीर, प्रहरी राजू भाटिया, सुखचरण सिंह, रणवीर सिंह, प्रहरी ओमप्रकाश को दोषी माना गया। घटना के 4 साल बाद भी कार्मिक विभाग ने जांच के नाम पर मामला अटका रखा है। इनमें महावीरप्रसाद और शब्बीर तो सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
2. सीकर जेल में गोलीकांड : वर्ष 2004 में कैदी राजू को सुभाष ने गोली मार दी थी। इसमें तत्कालीन उपाधीक्षक मंगलचंद सहित 5 जेलकर्मियों को दोषी माना गया। लेकिन जांच अब तक कार्मिक विभाग में लंबित है।
3. सात घोटाले, फिर भी आराम से रिटायर : जेल अधीक्षक के रूप में भ्रष्टाचार के मामलों में वीके माथुर का नाम सबसे ऊपर है। माथुर को 15 अप्रेल 2006 को जयपुर सेंट्रल जेल में 2 बंदियों को नियम विरुद्ध सहायता करने का दोषी माना गया। लेकिन कार्रवाई करने की बजाय 2 माह बाद उन्हें कोटा जेल का अधीक्षक बना दिया गया। वहां जून 2006 में वरिष्ठ लिपिक लीलाधर के साथ मिलकर 3.54 लाख का गबन किया। अप्रेल 2009 में जयपुर सेंटल जेल में कैदियों के गेहंू में घोटाला किया। जेल प्रशासन की जांच में उनके साथ तत्कालीन अधीक्षक शंकर सिंह को भी दोषी माना गया। कोटा जेल के अस्पताल में अनियमितताएं करने और बंदियों के नियम विरुद्ध पैरोल देने के 5 मामलो में जेल प्रशासन ने माथुर को चार्जशीट भी थमाई। उनके खिलाफ सातों मामले कार्मिक विभाग के पास पेडिंग रहे और माथुर सेवानिवृत्त हो गए।
4. जेल तोड़ भागे बंदी : धौलपुर में 7 नवंबर 2001 को जेल का गेट तोड़कर बंदी फरार हो गए। इसमें तत्कालीन जेल अधीक्षक विश्वेष जोशी, सहायक कारपाल केहरी सिंह, मुख्य प्रहरी चंद्रपाल सिंह सहित 7 जेलकर्मियों को दोषी माना गया। विश्वेष को भरतपुर जेल में वर्ष 2009 में देसी कट्टा और कारतूस मुहैया कराने, महिला बंदी की संदिग्ध मौत के मामले में भी दोषी पाया गया।
5. जेलकर्मी पर गोली चलाने वालों की मिजाजपुर्सी : वर्ष 2007 में जेलर चंद्रकांत पर गोली चलाने वालों की जेलकर्मियों ने मिजाजपुर्सी तक की। इसमें तत्कालीन जेल अधीक्षक चेतनदेव उपाध्याय को चार्जशीट मिली। उपाध्याय पर बंदियों की दीपावली की विशेष खुराक डकार जाने का आरोप भी है।
6. हाई सिक्योरिटी जेल में भ्रष्टाचार : राज्य के एक मात्र हाई सिक्योरिटी जेल में भ्रष्टाचार के मामले में उपाधीक्षक प्रदीप लखावत सहित 3 जेलकर्मियों के खिलाफ भी कार्मिक विभाग ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है।