बसपा ने अपनी याचिका में दलील दी कि बसपा एक राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी है. लिहाजा, पार्टी की किसी भी यूनिट के विलय का फैसला राज्य की यूनिट नहीं कर सकती, जबतक कि राष्ट्रीय इकाई पार्टी के विलय पर मुहर न लगा दे।
एसएलपी में राजस्थान हाईकोर्ट के पिछले साल के 24 अगस्त के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें हाईकोर्ट ने बसपा की याचिका को खारिज करते हुए दलबदल का मामला स्पीकर के समक्ष उठाने की छूट दी थी। एसएलपी में कहा गया कि बसपा विधायकों को सत्ता का लालच देकर कांग्रेस में शामिल किया गया है। इसके विरुद्ध पार्टी पहले स्पीकर के समक्ष की गई, जहां सुनवाई नहीं होने पर हाईकोर्ट की एकलपीठ में याचिका पेश की गई लेकिन हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए दल बदल के मामले को विधानसभा स्पीकर के सामने उठाने को कहा।
वहीं भाजपा विधायक मदन दिलावर ने एसएलपी में कहा कि अब विधानसभा अध्यक्ष उनके मामले की सुनवाई नहीं कर रहे हैं। ऐसे में एकलपीठ के आदेश को रद्द कर मामले में दिशा-निर्देश दिए जाए। जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने स्पीकर सहित को नोटिस जारी कर जवाव तलब किया है।
बता दें कि बसपा के ये विधायक सितंबर 2019 में कांग्रेस में शामिल हुए थे, जिसे राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष ने 18 सितंबर 2019 को मंजूरी दी थी। सुप्रीम कोर्ट पहले खारिज कर चुका मामला
6 बसपा विधायकों के कांग्रेस में विलय मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा विधायक मदन दिलावर की याचिका पिछले साल 24 अगस्त को खारिज कर दी थी। जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा था कि इस मामले पर राजस्थान हाईकोर्ट का फैसला आ गया है, इसलिए अब मामले में सुनवाई का कोई मतलब नहीं है।