शीर्ष अदालत का ये दिखा रुख
उच्चतम न्यायालय ने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के फैसले पर रोक लगाने से इंकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इस मुद्दे की जांच करेगा। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने एक जनहित याचिका पर सुुनवाई करते हुए ये बात कही।
खंडपीठ ने आरक्षण को चुनौती देने वाली गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘यूथ फॉर इक्वालिटी’ की याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस भी जारी किया है और उससे चार सप्ताह के अंदर जवाब मांगा है। याचिका में 103वें संविधान संशोधन अधिनियम 2019 को चुनौती दी है, जिसके तहत सरकारी नौकरियों तथा शैक्षणिक संस्थानों में सामान्य वर्ग के कमजोर लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था की गई है।
सीएम गहलोत ने विधानसभा में किया था आश्वस्त दो दिन पहले ही सीएम अशोक गहलोत ने विधानसभा में सवर्ण वर्ग के आर्थिक पिछड़ों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की थी। राज्यपाल के अभिभाषण पर हुई बहस का जवाब देते हुए गहलोत ने कहा था कि हमने पिछली सरकार के समय सवर्ण वर्ग के आर्थिक पिछड़ों को 14 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए संविधान में संशोधन करने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा था, तब वाजपेयी सरकार ने इस बारे में आश्वासन भी दिया था, लेकिन इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। केंद्र सरकार ने अब दस प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया है, जिसकी राज्य में भी पालना की जाएगी।
ऐसे मिलेगा लाभ दरअसल, लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार ने सवर्णों को आरक्षण देने का ऐलान किया था। सरकार के सवर्ण आरक्षण बिल को लोकसभा और राज्यसभा से मंजूरी मिलने के बार राष्ट्रपति ने भी इस विधेयक पर हस्ताक्षर कर दिए थे। इसके बाद कानून मंत्रालय ने भी बिल को प्रभावी बनाने में नोटिस जारी कर दिया था। अब सवर्ण आरक्षण का लाभ उन सवर्णों को मिलेगा जिनकी वार्षिक आय 8 लाख रुपए से कम होगी। इसके अलावा आरक्षण के हकदार वे ही रहेंगे जिनके पास पांच एकड़ से कम जमीन होगी।