ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई बताते हैं कि पौष माह में भगवान सूर्य की पूजा करने का विशेष महत्व है। इस माह के स्वामी सूर्यदेव ही हैं। इस महीने में सूर्य धरती के करीब होते हैं जिसके कारण उनका प्रभाव और बढ़ जाता है। कहा गया है कि इस माह मे सूर्य अपनी 11 हजार रश्मियों के साथ धरती का पोषण करते हैं। सूर्य को धरती और स्वर्ग के बीच का केंद्र भी कहा गया है।
पौष माह में ही सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के दिन यानि मकर संक्रांति को महापर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन की सूर्यपूजा त्वरित फलदायी होती है। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ ही उत्तरायण शुरू हो जाता है। उत्तरायण में सूर्य ही देवताओं के अधिपति होते हैं। खास बात यह है कि इस अवधि में सूर्य अपने ही नक्षत्र यानी उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में रहता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित नरेंद्र नागर के अनुसार 14 जनवरी को मकर संक्रांति के पहले 11 जनवरी को सूर्य उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में आ चुके हैं। सूर्यदेव यहां 24 जनवरी तक रहेंगे। इस अवधि में सुबह जल्दी उठकर सूर्यदेव को जल अर्पित करना चाहिए। सूर्यदेव को अर्घ्य देने का स्कंदपुराण में बहुत महत्व बताया गया है। इसमें सूर्यदेव को जल चढ़ाए बिना भोजन करने को पाप करने के समान बताया गया है।