चांद बिहारी का जन्म जयपुर में हुआ और यही पर वो अपने पांच भाई-बहनों के साथ पले बढ़े। घर की माली हालत पिता के सट्टा खेलने की बुरी आदत के कारण काफी खस्ता हाल थी। ऐसे में वह स्कूल जा कर अपनी पढ़ाई भी हासिल नहीं कर सके। चांद बिहारी के मुताबिक, तंगहाली के कारण उन्हें दो भाईयों और मां के साथ मिलकर पकौड़े बेचने का काम करना पड़ा। सबसे बड़ी बात हमारे समाने चुनौती थी कि हम स्कूल जाएं या फिर पेट भरने के लिए रुपए कमाएं। इसलिए उन्होंने धंधा संभालना उचित समझा।
पुटपाथ पर चांद बिहारी अग्रवाल 12 से 14 घंटे काम कर किसी तरह अपना घर चलाते थे। तो उनका कहना कि शायद स्कूली शिक्षा हासिल की होती तो आज और भी ज्यादा सफल हो सकते थे। बावजूद इसके पटना में उनकी ज्वैलर्स बाजार पर इतनी पकड़ बन चुकी है कि अगर कोई इन आभूषणों को खरीदने की सोचता है तो सबसे पहले उनके शोरुम चांद बिहारी ज्वैलर्स का नाम पहले लेता है।
साल 1972 में उनके भाई की शादी के बाद उनके छोटे भाई रतन ने उन्हें अपने पास बुला लिया। और फिर पैसे की कमी के कारण दोनों भाई पुटपाथ पर ही कपड़ा बेचने लगे। उस वक्त चांद बिहारी पटना में इकलौते ऐसे कारोबारी थे जो कि राजस्थानी साड़ियां बेचा करते थे। फिर धीरे-धीरे उनका धंधा आगे बढ़ने लगा। और स्थिति थोड़ी अच्छी हुई तो इन्होंने अपनी एक दुकान डाली। लेकिन दुर्भाग्य से 1977 में उनके दुकान पर चोरी हो गई, जिससे उनकी गाढ़ी कमाई चली गई, लगभग 4 लाख का नुकसान झेलने के बावजूद भी इनका हसौला नहीं टूटा।
इस घटना के बाद ही इन्होंने अपने भाई के साथ मिलकर साड़ी का धंधा छोड़ रत्न और आभूषण के कारोबार की दुनिया में कदम रखा। हालांकि इस धंधे का चांद बिहारी के पास कोई अनुभव नहीं था, लेकिन इनके भाई रतन ने इन्हें काफी कुछ समझाया। जिसके बाद इन्होंने शुरुआती 50 हजार रुपए से ज्वैलर्स का धंधा शुरु किया। फिर इसके बाद चांद बिहारी अग्रवाल ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। और फिर अपने हुनर के दम पर गोल्ड का कारोबार शुरु किया। जिसके बाद अपनी शाख के कारण इनका धंधा इतना चला कि आज बिहार और आसपास के राज्यों में इनके कारोबार को हर कोई जानने लगा। साल 2016 में इनके शोरुम की सलाना टर्नओवर 17 करोड़ रुपए थी।