पत्रिका की टीम ने शहर के मुरलीपुरा, विद्याधर नगर, वैशाली नगर, मानसरोवर, सोडाला से लेकर परकोटा और आमेर तक की सफाई व्यवस्था को देखा। सुबह जगह-जगह कचरे के ढेर लगे दिखाई दिए। दोपहर तक 80 फीसदी कचरा निगम ने उठवा दिया, लेकिन शाम होते-होते फिर से सड़कों पर कचरा आना शुरू हो गया।
मिलकर नहीं की तैयारी, विवाद में निकला समय - हैरिटेज नगर निगम में निर्दलीय पार्षदों से लेकर कांग्रेस के पार्षद भी नाराज हैं। पार्षद कई बार धरने दे चुके। ऐसे में पार्षदों का फोकस सफाई पर रह ही नहीं पाया। महापौर मुनेश गुर्जर ने जरूर दौरे किए और व्यवस्था को दुरुस्त करने का प्रयास किया। लेकिन, प्रयास नाकाफी साबित हुए।
- ग्रेटर नगर निगम में महापौर, उप महापौर और आयुक्त के बीच विवाद की स्थिति कई महीनों से बनी हुई है। अधिकारियों ने भी फील्ड में उतरकर सफाई व्यवस्था को नहीं देखा। बड़ी दिक्कत
-हैरिटेज निगम ने कचरा संग्रहण की नई व्यवस्था शुरू की, लेकिन वो अब तक प्रभावी तरीके से लागू नहीं हो पाई है। गीला-सूखा कचरा अब तक अलग करना शुरू नहीं किया है। -ग्रेटर निगम में बीवीजी कंपनी ही कचरा संग्रहण का काम कर रही है। 300 से अधिक हूपर चलाने का दावा कंपनी की ओर से किया जा रहा है। लेकिन, फिर भी जतना परेशान है।
ये बड़े जिम्मेदार -मुकेश कुमार, उपायुक्त, स्वास्थ, ग्रेटर निगम -आशीष कुमार, उपायुक्त स्वास्थ्य, हैरिटेज निगम -सभी जोन के उपायुक्त (जोन उपायुक्त सफाई व्यवस्था में रुचि नहीं दिखाते। अधिकतर का मानना है कि सफाई व्यवस्था के लिए अलग से उपायुक्त हैं।)
........ यहां फेल: 1. सिटीजन वॉयस : 2250 अंक का है। इसमें लोगों से शहर की सफाई व्यवस्था के बारे में लोगों से फीडबैक लिया जाना है। लेकिन, निगम की ओर से कोई जागरुकता अभियान नहीं चलाया गया। पहली बार फीडबैक को दो आयु वर्गों में बांटा गया। वरिष्ठ नागरिकों को भी शामिल किया गया है।
2. सर्विस लेवल प्रोग्रेस : 3000 अंकों का है। कचरा संग्रहण से लेकर कचरा निस्तारण की व्यवस्था को देखा जाएगा। दोनों ही निगमों में एक जैसी व्यवस्था है। कचरा संग्रहण की व्यवस्था ही सही नहीं है। रोज 1500 टन कचरे में से 1300 टन कचरा डम्प किया जा रहा है।
(दोनों ही प्रक्रियाओं में जन भागीदारी जरूरी है, लेकिन निगम इसमें पूरी तरह विफल रहा।)