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जयपुर में भगवान श्री गणेश के इस मंदिर में यमराज के मुनिम चित्रगुप्त रखते हैं लेखा-जोखा!

locationजयपुरPublished: Aug 22, 2017 06:59:00 pm

Submitted by:

dinesh

सूर्यदेव अपनी पहली किरणों से गजानंद के चरणों का अभिषेक करते हैं…

Ganpati ji
जयपुर। प्रथम पूज्य गजानंद भगवान का जन्मोत्सव 25 अगस्त को मनाया जाएगा। मंदिरों के साथ घर-घर प्रथम पूज्य की स्थापना और आराधना होगी। गणेश चतुर्थी को लेकर शहर में तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। हम आज से आपको छोटी काशी के प्राचीन मंदिरों की स्थापना से खासियत और उनके इतिहास से रू-ब-रू करवा रहे हैं। शहर के रामगंज से आगे सूरजपोल बाजार में एक ऐसा प्राचीन गणेश मंदिर है जिसमें एक साथ तीन मंदिर स्थापित हैं। यानि गणेशजी के साथ राधा-कृष्ण और चित्रगुप्त भी बिराजे हैं। लेकिन फिर भी मंदिर की श्वेत सिद्धि विनायक के नाम से पहचान है। प्रात: सूर्यदेव अपनी पहली किरणों से गजानंद के चरणों का अभिषेक करते हैं।
संगमरमर के पत्थर से बनी है प्रतिमा
सूरजपोल बाजार में श्वेत सिद्धि गणेश मंदिर स्थित है। श्वेत संगमरमर के पत्थर की होने से इस मंदिर श्वेत सिद्धि विनायक के नाम से प्रसिद्ध है। कहते हैं सिद्धि विनायक की महिमा अपरंपार है। वे भक्तों की मनोकामना को तुरंत पूरा करते हैं। मंदिर के प्रन्यासी महंत मोहनलाल शर्मा ने बताया कि इस मंदिर का निर्माण जयपुर के महाराजा सवाई रामसिंह के समय कराया गया था। मंदिर की नींव माघ कृष्ण पंचमी को रखी गई थी। गणेश जी की दक्षिणवृत्ति श्वेत प्रतिमा इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत है। ऐसा माना जाता है कि गणेश प्रतिमा की स्थापना तांत्रिक विधि-विधान की गई थी। यही एक वजह है कि यहां गणेश जी की प्रतिमा पर सिंदूर का चोला नहीं चढ़ाया जाता है। प्रतिमा का केवल दूध एवं जल से ही अभिषेक होता है। जिसके चलते इस पर यहां लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। गणेश जी के चारों भुजा ओं में सर्पाकार मणिबंध और पैरों में पेजनी है। गणेश जी का जनेऊ भी सर्पाकार है।
भक्तों की गहरी आस्था
पुष्य नक्षत्र, शरद पूर्णिमा, गणेश चतुर्थी तथा अन्य अवसरों पर यहां विशेष आयोजन होता है। इस मंदिर के प्रति आस-पास के लोगों में गहरी आस्था है। यहां बुधवार को बड़ी संख्या में भक्त दर्शनों के लिए आते हैं।
चित्रगुप्त रखते हैं लेखा-जोखा
छोटी काशी में श्वेत सिद्धि विनायक एक ऐसा मंदिर है जहां भगवान यम के मुनिम चित्रगुप्त का मंदिर स्थापित है। ऐसा माना जाता है कि ईशान कोण में इस मंदिर की स्थापना लोगों के पाप पुण्य का लेखा-जोखा रखने के लिए की गई थी। यहां दीवाली के एक दिन पहले यम चतुदर्शी पर यज्ञ का भी आयोजन होता है। मध्य में राधा-कृष्ण भगवान का मंदिर स्थापित है।
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