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खूबसूरत इमारत पर आरोप-प्रत्यारोप के बीच नया मोड, राजस्थान के इस महाराजा के जमीन पर बना है ताजमहल

locationजयपुरPublished: Oct 19, 2017 10:02:02 am

Submitted by:

Kamlesh Sharma

ताजमहल इमारत आमेर नरेश रहे मानसिंह प्रथम की आगरा स्थित मान हवेली पर बनी है।

taj mahal

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जयपुर। दुनिया की सबसे खूबसूरत इमारत ताजमहल पर आरोप-प्रत्यारोप के बीच एक नया मोड़ आ गया है। यह इमारत आमेर नरेश रहे मानसिंह प्रथम की आगरा स्थित मान हवेली पर बनी है। साथ ही इसको बनाने वाले शिल्पकार, कारीगर और मजदूर सब यहीं से ही भेजे गए थे।
प्रदेश के इतिहासकारों के पास मौजूद फारसी लेखों में यह खुलासा हुआ है। पर्यटन अधिकारी रहे गुलाब सिंह मीठड़ी के पास मौजूद दस्तावेज के मुताबिक शाहजहां चाहते थे कि आगरा किले से उनको ताजमहल आसानी से दिखाई दे।
शिल्पकारों ने यमुना किनारे आमेर रियासत की मान हवेली की जगह को ताजमहल के लिए सही स्थान माना। इस जगह पर यमुना नदी के मुडऩे पर इमारत को पानी का धक्का भी कम लगता था। बेगम मुमताज महल उर्फ शाही अर्जुमंद बानो बेगम का 6 जून 1631 को इंतकाल होने के बाद बादशाह ने अपनी बेगम की याद में ताजमहल निर्माण की योजना बनाई थी।

वफादार सरदार थे मिर्जा राजा
अकबर के सेनापति और आमेर नरेश मानसिंह प्रथम की यमुना किनारे बनी मान हवेली उनके पौत्र मिर्जा राजा जयसिंह प्रथम के अधिकार में थी। अपने दादा मानसिंह प्रथम की मृत्यु के बाद आमेर के मिर्जा राजा जयसिंह भी मुगल बादशाह शाहजहां के दरबार में अग्रिम पंक्ति के वफादार राजपूत सरदार थे। जयसिंह प्रथम ने अपनी मान हवेली भेंट करने का बादशाह के पास प्रस्ताव रखा था।
शाहजहां ने मुफ्त की जमीन पर बेगम मुमताज की यादगार में ताजमहल बनाना ठीक नहीं समझा। शाहजहां कालीन इतिहासकार अब्दुल हमीद लाहौरी और मोहम्मद सालिह कम्बो के लिखित दस्तावेजों व फरमानों का अध्ययन करने के बाद इतिहासकार डॉ. रामनाथ ने ताजमहल निर्माण के इस रहस्य को उजागर किया है।
ये हवेलियां मिली बदले में
18 दिसम्बर 1633 में ताजमहल के लिए ली गई जमीन के बदले आगरा की चार अधिग्रहीत सरकारी हवेलियां आमेर नरेश को देने की सनद है। इसमें राजा भगवानदास की हवेली, माधोसिंह की हवेली, रूपजी की हवेली और स्वरुप सिंह पुत्र चांद सिंह की हवेली है।
मकराना से संगमरमर मंगाया था
शाहजहां ने 21 जनवरी 1632 को आमेर नरेश को फरमान भेजा, जिसमें मकराना के संगमरमर को आगरा भेजने के लिए बड़ी तादाद में बैल गाडिय़ां भेजने का उल्लेख है। यह भी लिखा कि बैलगाड़ी भाड़े का खर्र्च की रकम संगमरमर खरीद की दी हुई रकम में से दे दी जाए।
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