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जयपुर

दोहरा पाएंगे क्लीन स्वीप का करिश्मा!

टारगेट 2019: भाजपा ने 2014 में 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जीती थी सभी सीटें, कांग्रेस ने दो राज्यों में किया था सफाया, अब पिछले पांच साल में बदल गई है तस्वीर

जयपुरMar 09, 2019 / 12:27 pm

Aryan Sharma

Jaipur

दोहरा पाएंगे क्लीन स्वीप का करिश्मा!

जयपुर. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में भाजपा ने 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में क्लीन स्वीप किया था। राजस्थान, गुजरात, दिल्ली और उत्तराखंड में सभी सीटें भाजपा के खाते में गई थी, जिससे लोकसभा में भाजपा और कांग्रेस की कुल सीटों में बहुत बड़ा फासला आ गया। अब भाजपा के सामने इन राज्यों में उसी कामयाबी को दोहराने की चुनौती है। हालांकि पिछले पांच साल में राजनीतिक परिस्थितियां काफी बदल चुकी हैं। यही नहीं, कांग्रेस सहित अन्य दलों ने भी कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सभी सीटें जीती थी, लेकिन फर्क यह है कि इनमें केवल एक या दो ही सीटें थी।
अब बदल गए हैं समीकरण
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में गुजरात की बात करें तो भाजपा ने सभी 26 सीटें जीती थी। मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद उस समय राज्य के मुख्यमंत्री थे। गुजरात से उठी मोदी लहर ही पूरे देश में फैली थी, ऐसे में जाहिर तौर पर तब गुजरात में भाजपा की स्थिति सुदृढ़ थी। इससे पहले के लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो 2009 में भाजपा ने यहां 15 तो कांग्रेस ने 11 सीटें जीती थी। 2004 में 14 सीटें भाजपा और 12 कांग्रेस के खाते में थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में शानदार कामयाबी के बाद भाजपा ने यूं तो 2017 में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में फिर से सरकार बनाई, लेकिन उसे 16 विधानसभा सीटों का नुकसान उठाना पड़ा। पिछले कुछ वर्षों में राजनीतिक समीकरण बदले हैं। विधानसभा चुनाव के परिणामों के आधार पर लोकसभा सीटों की तुलना करें तो भाजपा यहां 8 सीटें गंवा रही है। बनासकांठा, पाटण, मेहसाणा, साबरकांठा, सुरेन्द्रनगर, जूनागढ़, अमरेली और आणंद सीट कांग्रेस पर कांग्रेस की स्थिति मजबूत है। ऐसे में गुजरात में भाजपा के लिए फिर से ‘स्पेशल 26’ का जादुई आंकड़ा बनाने की कड़ी चुनौती है।
विधानसभा चुनाव में मिली हार, फिर से जीतना है विश्वास
राजस्थान में 2014 लोकसभा चुनाव में जबरदस्त प्रदर्शन कर सभी 25 सीटों पर काबिज होने वाली भाजपा को 2018 के विधानसभा चुनाव में राज्य में सत्ता से हाथ धोना पड़ा। यही नहीं, भाजपा 2013 के विधानसभा चुनाव की तुलना में आधी सीट भी नहीं जीत पाई। उसे 90 सीटों का भारी नुकसान हुआ। 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा राजस्थान में सिर्फ चार ही सीट जीत पाई थी, जबकि कांग्रेस ने 20 सीटें अपने नाम की थी। एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी जीता था। 2004 में भाजपा 21 और कांग्रेस 4 सीटों पर काबिज हुई थी। हालिया विधानसभा चुनाव परिणामों के आधार पर भाजपा को 13 सीटों का नुकसान हो रहा है। इन पर कांग्रेस की स्थिति मजबूत हुई है। ऐसे में आगामी लोकसभा चुनाव में राजस्थान भाजपा के लिए खुद को साबित करने की किसी परीक्षा से कम नहीं है।
दिल्ली में जीत का ‘सत्ता’ आसान नहीं
दिल्ली में 2014 में भाजपा सभी सात सीटों पर काबिज हुई थी। हालांकि इससे पहले 2009 में सभी सीटें कांग्रेस के खाते में थी। 2004 में भी भाजपा की स्थिति अच्छी नहीं थी, तब कांग्रेस ने छह और भाजपा ने एक सीट जीती थी। अब दिल्ली में भाजपा व कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी (आप) भी मुकाबले में है। आप ने 6 सीटों पर प्रत्याशी भी घोषित कर दिए हैं। बता दें कि दिल्ली में विधानसभा चुनाव 2015 में आप ने 70 में से 67 सीटें जीत सरकार बनाई। भाजपा महज तीन सीट पर सिमट गई। कांग्रेस तो खाता भी नहीं खोल पाई थी। इसके आधार पर देखें तो भाजपा को लोस की सभी सीटों पर नुकसान हुआ। लिहाजा भाजपा के लिए दिल्ली में 2014 की जीत का ‘सत्ता’ दोहराना आसान नहीं है।
इन पर भी नजर
उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और गोवा भी ऐसे राज्य हैं, जहां पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने क्लीन स्वीप किया था। उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव 2009 में कांग्रेस ने भी सभी पांच सीटें जीती थी। खास बात यह है कि वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद अभी तीनों ही राज्यों में भाजपा की सरकार है। हिमाचल में विधानसभा चुनाव में भाजपा को 18 सीटों का फायदा हुआ, वहीं लोकसभा सीटों पर भी भाजपा की स्थिति मजबूत हुई। उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 26 सीटों के फायदे के साथ 57 सीटें जीती। यहां पहली बार किसी दल को 50 से ज्यादा सीट मिली। इससे यहां भाजपा का वोट शेयर बढ़ा है। गोवा में भले ही सरकार भाजपा ने बनाई, लेकिन कांग्रेस को यहां आठ विधानसभा सीटों का फायदा हुआ, जबकि भाजपा ने आठ सीटें खो दी। इसके आधार पर आकलन करें तो दो लोकसभा सीटों वाले इस राज्य में दोनों दल बराबर स्थिति में हैं। इसके अलावा 2014 में भाजपा ने चंडीगढ़, अंडमान निकोबार, दमन एवं दीव और दादर एवं नगर हवेली की एक-एक सीट जीतकर क्लीन स्वीप किया था।
कांग्रेस के लिए हैट्रिक की चुनौती
मणिपुर और मिजोरम में भले ही एक या दो सीट हों, लेकिन यहां कांग्रेस ने 2014 में क्लीन स्वीप किया था। मणिपुर की दोनों और मिजोरम की एक सीट पर कांग्रेस ने विजय हासिल की थी। खास बात यह है कि 2009 लोकसभा चुनाव में भी दोनों राज्यों में सभी सीट कांग्रेस ने ही जीती थी। अब कांग्रेस के सामने क्लीन स्वीप करने के सिलसिले को इस बार भी बरकरार रखने और जीत की हैट्रिक बनाने की चुनौती रहेगी। हालांकि मिजोरम में 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को एमएनएफ से करारी शिकस्त मिली। इसके परिणाम के आधार पर मूल्यांकन करें तो कांग्रेस यहां की एकमात्र लोकसभा सीट पर पिछड़ रही है। मणिपुर में 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा-कांग्रेस दोनों को ही बड़ी संख्या में सीटों का नुकसान हुआ। इसके आधार पर दो लोकसभा सीट वाले मणिपुर में दोनों दल की स्थिति समान है।
मुश्किल है वैसी कामयाबी
भाजपा के लिए 2014 के चुनाव नतीजों को इस बार दोहराना मुश्किल है। कुछ एंटी इनकबेंसी है तो कुछ विपक्षी दलों का एक साथ आना चुनौती बन सकता है। राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ विस चुनाव परिणामों का भी असर देखने को मिलेगा। सरकार कुछ मोर्चों पर विफल रही। फिर भी पीएम मोदी की ओवरऑल गुडविल है।
-नीरजा चौधरी, राजनीतिक विश्लेषक
लोकसभा चुनाव 2014 में यहां किया सूपड़ा साफ

भाजपा
पार्टी सीट
गुजरात 26/26
राजस्थान 25/25
दिल्ली 7/7
उत्तराखंड 5/5
हिमाचल प्रदेश 4/4
गोवा 2/2
चंडीगढ़ 1/1
अंडमान निकोबार 1/1
दादर, नगर हवेली 1/1
दमन एंड दीव 1/1

कांग्रेस
मणिपुर 2/2
मिजोरम 1/1

अन्य दल
सीपीएम
त्रिपुरा 2/2
एनसीपी (नेशनल कांग्रेस पार्टी)
लक्षद्वीप 1/1
एसडीएफ
(सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट)
सिक्किम 1/1
एनपीएफ (नगा पीपुल्स फ्रंट)
नगालैंड 1/1
एआईएनआरसी
(ऑल इंडिया एन आर कांग्रेस)
पुड्डुचेरी 1/1

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