इधर, जयपुर में उनके भक्तों और अनुयायियों सहित जैन समाज के लोगों में शोक की लहर दौड गई। आज दोपहर बाद तीन से पांच बजे तक पदमपुरा में पूरा बाजार बंद रहेगा और स्थानीय निवासी, मंदिर प्रबंध समितिख् उनके अनुयायी और कर्मचारी उन्हें श्रद्दांजलि अर्पित करेंगे। तरुण सागर जी को करीब तीन हफ्ते पहले पीलिया हो गया था। स्वास्थ्य सुधरता ना देख उन्होंने इलाज कराना बंद कर दिया था और चातुर्मास स्थल पर जाने का निर्णय लिया था। गुरुवार सुबह उनकी तबियत बिगड़ी। इसके बाद अपने गुरु पुष्पदंत सागर महाराज की स्वीकृति के बाद संलेखना (आहार-जल न लेना) लेने का फैसला किया।
कडवे प्रवचनों के लिए जाने जाएंगे हमेशा मुनिश्री अपने कडवे प्रवचनों के लिए जाने जाते रहे। इसी कारण उन्हें क्रांतिकारी संत भी कहा जाता था। कडवे प्रवचन नामक उनकी पुस्तक काफी प्रचलित है। तरूणसागरजी के मध्यप्रदेश और हरियाणा विधानसभा में प्रवचन भी दे चुके थे। मुनिश्री को मध्ययप्रदेश सरकार ने 6 फरवरी 2002 को राजकीय अतिथि का दर्जा दिया था। उनका मूल नाम पवन कुमार जैन था। मुनिश्री ने 8 मार्च 1981 को घर छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने छत्तीसगढ़ में दीक्षा ली।
राजस्थान हाईकोट ने लगाई थी संल्लेखना पर रोक, सुप्रीम कोर्ट ने हटा दी थी रोक राजस्थान हाईकोर्ट ने 2015 में संल्लेखना और समाधि मरण को आत्महत्या जैसा बताते हुए उसे भारतीय दंड संहिता 306 और 309 के तहत दंडनीय बताया था। दिगंबर जैन परिषद ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। जैन धर्म के मुताबिक, मृत्यु को समीप देखकर धीरे-धीरे खानपान त्याग देने को संथारा या संलेखना (मृत्यु तक उपवास) कहा जाता है। इसे जीवन की अंतिम साधना भी माना जाता है।
तरुण सागर जी महाराज परिचय
पूर्व नाम – पवन कुमार जैन
जन्म तिथि – 26 जून, 1967, ग्राम गुहजी , (जि.दमोह ) म. प्र.
माता-पिता – महिला रत्न श्रीमती शांतिबाई जैन एवं प्रताप चन्द्र जी जैन
लौकिक शिक्षा – माध्यमिक शाला तक
गृह – त्याग – 8 मार्च , 1981
शुल्लक दीक्षा – 18 जनवरी , 1982, अकलतरा ( छत्तीसगढ़) में
मुनि- दीक्षा – 20 जुलाई, 1988, बागीदौरा (राज.)
दीक्षा – गुरु – यूगसंत आचार्य पुष्पदंत सागर जी मुनि
लेखन – हिन्दी
बहुचर्चित कृति – मृत्यु- बोध
मानद-उपाधि – ‘प्रज्ञा-श्रमण आचार्यश्री पुष्पदंत सागरजी द्वारा प्रदत
प्रख्यायती – क्रांतिकारी संत
कीर्तिमान – आचार्य भगवंत कुन्दकुन्द के पश्चात गत दो हज़ार वर्षो के इतिहास मैं मात्र 13 वर्स की वय में जैन सन्यास धारण करने वाले प्रथम योगी। रास्ट्र के प्रथम मुनि जिन्होंने लाल किले (दिल्ली) से सम्बोधन। जी.टी.वी. के माध्यम से भारत सहित 122 देशों में महावीर – वाणी ‘ के विश्व -व्यापी प्रसारण की ऐतिहासिक सुरुआत करने का प्रथम श्रेय।
मुख्य – पत्र – अहिंसा – महाकुम्भ (मासिक)
आन्दोलन – कत्लखानों और मांस -निर्यात के विरोध में निरंतर अहिंसात्मक रास्ट्रीय आन्दोलन 7
सम्मान – 6 फरवरी ,2002 को मध्यप्रदेश शासन की ओर से राजकीय अतिथि ‘ का दर्जा।
2 मार्च , 2003 को गुजरात सरकार की ओर से राजकीय अतिथि ‘का सम्मान।
साहित्य – तीन दर्जन से अधिक पुस्तके उपलब्ध और उनका हर वर्ष करीब दो लाख प्रतियों का प्रकाशन।
रास्ट्र संत – मध्यप्रदेश सरकार की ओर से 26 जनवरी , 2003 को दशहरा मैदान , इंदोर में
संगठन – तरुण क्रांति मंच .केन्द्रीय कार्यालय दिल्ली में देश भर में इकाइया
प्रणेता – तनाव मुक्ति का अभिनव प्रयोग आंनंद- यात्रा कार्यक्रम के प्रणेता
पहचान – देश में सार्वाधिक सुने और पढ़े जाने वाले और दिल और दिमाग को झकझोर देने वाले अधभुत प्रवचन। अपनी नायाब प्रवचन शैली के लिए देशभर में विखाय्त जैन मुनि के रूप में पहचान।
मिशन – भगवान महावीर और उनके संदेश ” जियो और जीने दो ” का विश्व व्यापी प्रचार प्रसार एवम जीवन जीने की