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‘जीना हैं तो नींद में भी पैर हिलाते रहिए, वर्ना लोग मरा हुआ समझकर जलाने में देर नहीं लगाएंगे

locationजयपुरPublished: Sep 09, 2018 10:07:53 pm

Submitted by:

Harshit Jain

-मुनि तरुण सागर के कड़वे प्रवचन की दसवीं और अंतिम कृति का जनकपुरी स्थित जैन मंदिर में हुआ विमोचन, पुस्तक में रोजमर्रा के जीवन, आरक्षण से लेकर नेताओं का जिक्र

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‘जीना हैं तो नींद में भी पैर हिलाते रहिए, वर्ना लोग मरा हुआ समझकर जलाने में देर नहीं लगाएंगे

जयपुर. ‘जीना है तो नींद में भी पैर हिलाते रहिए, वर्ना लोग मरा हुआ समझकर जलाने में देर नहीं लगाएंगे। किसी भी समस्या-मुद्दे पर उपेक्षा और तटस्थता के भाव और मेरा क्या जाता है की प्रवृत्ति रखने वाले लोगों को जगाने के इस वाक्य सहित कई राह दिखाते कड़वे प्रवचन समेटे हुए है मुनि तरुण सागर के कड़वे प्रवचनों की 10 वीं पुस्तक। रविवार को मुनि की दसवीं पुस्तक का विमोचन जनकपुरी स्थित दिगम्बर जैन मंदिर में आर्यिका गौरवमति ससंघ के सानिध्य में हुआ। मुनि के देवलोकगमन से पहले ही इस पुस्तक के विमोचन का कार्यक्रम दिल्ली में तय था। लेकिन अब इसका विमोचन सबसे पहले जयपुर में हुआ।
दसवीं कृति यानि जिन्दगी का फलसफा

दसवीं कृति में मुनि ने राजनीति और संस्कृति से लेकर जीवन की परिस्थितियों, मेहनत, भगवान महावीर के संदेशों और भागदौड़ भरी जिंदगी में सबके लिए समय निकालने, आरक्षण, भ्रष्टाचार, पत्नी और माता-पिता का फर्क, मोबाइल की माया और भगवान को मानने की बात का तीखी पर सधी-सटीक भाषा में जिक्र किया है। वह केवल आध्यात्मिक जगत की बात नहीं करते थे बल्कि भौतिक जगत के सैद्धान्तिक पक्ष की बात भी करते थे और प्रायोगिक समाधान की राह भी दिखाते थे। कड़वे प्रवचनों की ९ कृतियों में मुनि ने आेजस वाणी से कई संदेश समाज और राष्ट्रहित के लिए दिए।
राह दिखाते बोल
मुनि ने पुस्तक में जीवन को आसान व सुखी रखने के सूत्र भी दिए हैं।
– सुखी होना चाहते हैं तो खुद को बदलिए। रिश्ते चाहे कितने भी बुरे हों और उन्हें भी निभाइए। तोडि़ए मत क्योंकि पानी भले ही गंदा हो, प्यास नहीं बुझा सकता पर आग तो बुझा सकता है।
– मेहनत सीढिय़ों की तरह होती है और भाग्य लिफ्ट की तरह।
– लक दो अक्षर, भाग्य ढाई अक्षर, नसीब तीन अक्षर, किस्मत साढ़े तीन अक्षर। मेहनत चार अक्षर लिए है, पर मेहनत चारों पर भारी पड़ती है।
– छाता बारिश को तो रोक नहीं सकता लेकिन बारिश में खड़े रहने का हौसला जरूर दे सकता है।
– संवाद स्वर्ग है और विवाद नर्क है।

नेताओं को शराब का नहीं, सत्ता का नशा है। सत्ता का नशा आध्यात्मिक कैंसर है।

20000 कॉपियां प्रकाशित

कृति की विशेषता यह है कि इसकी कल्पना मुनि ने जयपुर प्रवास के दौरान इसी वर्ष में की थी। उनकी यह कृति जयपुर में ही प्रकाशित हुई। पहले प्रकाशन में 20 हजार कॉपियां प्रिंट हुई है। बाड़ा पदमपुरा प्रबंध कार्यसमिति, जैन युवा और जैन महिला मंडल जनकपुरी, अखिल भारतीय दिगम्बर जैन युवा एकता संघ, अखिल भारतीय पुलक जन चेतना और राष्ट्रीय महिला जागृति मंच के सदस्य, ज्योति नगर, मानसरोवर सहित अन्य जगहों के श्रद्धालुआें ने मुनि के बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लिया। इस दौरा श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए विन्यांजलि सभा भी हुई।

जैन समाज ही नहीं जन समाज था प्रभावित
आर्यिका गौरवमति ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि मुनि तरुण सागर का बखान न तो शब्दो में और न ही कल्पनाओ में हो सकता है। मुनि तरुण सागर देश के ही नहीं अपितु संत समाज के भी गौरव थे हैं और रहेंगे। उनके वात्सल्य और करुणा का प्रभाव इतना था कि जैन समाज ही नहीं बल्कि पूरा जन समाज उनसे कड़वे प्रवचनों से प्रभावित था।

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