केस:1. अजय कुमार (बदला हुआ नाम) उम्र 13 वर्ष। पिछले डेढ़ महीने से स्कूल बंक कर अपने चार-पांच दोस्तों के साथ रूमाल में सूंघने वाला पदार्थ डालकर नशा कर रहा था। स्कूल से शिकायत आई तो परिजनों को पता चला। परिजनों ने जब उससे सख्ती से पूछताछ की तो उसने बताया कि वह नशा नहीं करता तो बैचेन हो जाता है।
केस:2. भूरा (बदला हुआ नाम) उम्र करीब 12 वर्ष। गत दिनों यह दिल्ली रोड हाइवे पर दोपहर में अपनी शर्ट खोलकर नंगे बदन सडक पर लेटा हुआ था। पास जाने पर पता चला वह नशे में था और उसे कोई होश नहीं था। वह पागलों की तरह हंस रहा था। कुछ देर बाद फिर से वही हरकत दोहराने लगा। आसपास के लोगोें ने बताया कि वह कचरा बीनता है और उसको बेचने के बाद जो रुपए मिलते है उनसे नशा करता है।
केस:2. भूरा (बदला हुआ नाम) उम्र करीब 12 वर्ष। गत दिनों यह दिल्ली रोड हाइवे पर दोपहर में अपनी शर्ट खोलकर नंगे बदन सडक पर लेटा हुआ था। पास जाने पर पता चला वह नशे में था और उसे कोई होश नहीं था। वह पागलों की तरह हंस रहा था। कुछ देर बाद फिर से वही हरकत दोहराने लगा। आसपास के लोगोें ने बताया कि वह कचरा बीनता है और उसको बेचने के बाद जो रुपए मिलते है उनसे नशा करता है।
लगातार बढ़ रही है ओपीडी में इनकी संख्या सेठी कॉलोनी स्थित मनोचिकित्सा केन्द्र के वरिष्ठ आचार्य एवं ईकाई प्रभारी डॉक्टर परमजीत सिंह बताते है कि इन दिनों विभिन्न प्रकार का नशा करने वाले बच्चों और युवाओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इसमें चौकाने वाली बात यह है कि कुछ बच्चों की उम्र महज 12-13 साल ही है। जो दोस्तों के साथ थीनर, व्हाइटनर, इंक रिमूवर, पेट्रोल एवं सोल्यूशन (पंचर बनाने में काम आने वाला पदार्थ) को कपड़े या रूमाल में डालकर सूंघते है। जिसके बाद यह नशे में मदहोश हो जाते है और जब इनका नशा उतरता है तो ये उत्तेजित हो आते है। इस प्रकार के रोज करीब 40 से 50 केस ओपीडी में आ रहे है।
एक्सपेरिमेंटल ऐज, परिजन रखें ध्यान डॉक्टर्स की मानें तो उनका कहना है कि बच्चों की ये उम्र एक्सपेरिमेंटल ऐज होती है। उनमें नए-नए काम करने की ललक होती है। बच्चे जब कोई नशा करते हैं तो कुछ समय बाद ये उसके आदि हो जाते हैं और फिर ये इसे बार-बार करने लगते हैं। इसके लिए ये घर से चोरी भी कर लेते हैं। इस प्रकार के नशे में हर तबके के बच्चे और युवा शामिल हैं।