निजी कंपनी को प्रोजेक्ट सौंपा गया। जयपुर वासियों का सपना पूरा करने के इस बड़े प्रोजेक्ट में जयपुर विकास प्राधिकरण की बड़ी भूमिका रही। अपनी सरकार का कार्यकाल पूरा होने से पहले प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए अधिकारियों को रह-रहकर पाबंद किया गया। जनता का पैसा इस प्रोजेक्ट पर पानी की तरह बहाया गया। इसके बावजूद शहर को उस खूबसूरती का आज भी इंतजार है, जिसका सपना देखा और दिखाया गया था। इस 1400 करोड़ से ज्यादा के प्रोजेक्ट में जेडीए को भुगतान करने की इतनी जल्दी रही कि वह निजी कंपनी को अब तक 1200 करोड़ से ज्यादा रुपए दे चुका है।
जब प्रोजेक्ट पूरा ही नहीं हुआ, सपना अधूरा ही रह गया तो आखिर इस जल्दबाजी का कारण क्या था? काम पूरा होने तक निजी कंपनी को भुगतान पर भुगतान क्यों किया जाता रहा? कांग्रेस उस समय इस प्रोजेक्ट में भ्रष्टाचार के आरोप लगातार लगाती रही। अब जब शहरवासियों को इस प्रोजेक्ट का उचित लाभ नहीं मिला और प्रोजेक्ट की हालत सबके सामने है, तो उस कथित भ्रष्टाचार की जांच क्यों नहीं की जा रही है? पूरे प्रोजेक्ट में केवल जनता का नुकसान हुआ है। जिन कॉलोनियों से गंदा पानी अमानीशाह नाले (अब द्रव्यवती नदी) में मिल रहा था, उन स्थानों को बंद ही कर दिया गया है। कॉलोनियों में बरसात के दौरान जल भराव की समस्या दूर होने के बजाय उलटे बढ़ गई।
द्रव्यवती नदी के पानी को साफ रखने के लिए बनाए सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट भी जगह-जगह काम नहीं कर रहे हैं। बदबू और मच्छरों की भरमार से आसपास के लोग परेशान हैं। दावा यह भी किया गया था कि नदी स्वच्छ पानी से भरी रहेगी, इससे भूजल स्तर भी बढ़ेगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। हर साल 20 करोड़ रुपए इसके रखरखाव के लिए कंपनी को देने की बात हुई है। क्या कंपनी इसका रखरखाव वास्तव में कर पा रही है? क्या इसे जनता के पैसे की बर्बादी नहीं कहा जाना चाहिए? प्रोजेक्ट का हश्र देखकर साफ हो गया है कि द्रव्यवती नदी के नाम पर केवल भूमि व्यवासयियों ने लाभ कमाया। नदी के आसपास की जमीनें कौडिय़ों से चढ़कर करोड़ों तक पहुंच गई।
नदी किनारे बच्चों के लिए जो पार्क बनाए गए, वे कई जगह अब तक भी बच्चों को मिल नहीं पाए हैं। पूरे प्रोजेक्ट से शहर का कोई खास भला नहीं हुआ है। हाल ही स्मार्ट सिटी एम्पावरिंग इंडिया अवॉर्ड से इस प्रोजेक्ट को नवाजा गया, तो फिर से द्रव्यवती नदी प्रोजेक्ट फिर से चर्चा में आया है।
सरकार को चाहिए जिस प्रोजेक्ट में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए, उसकी जांच भी हो। जो सवाल उठाए गए, उनका जवाब खोजा जाए। कंपनी के आगामी भुगतान और अधिकारियों की मनमानी रोक भी लगनी चाहिए। सरकारी खजाने की एक-एक पाई जनता के पसीने से आई है, इसका शहर-समाज के हित में ही उपयोग होना चाहिए।