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जलवायु परिवर्तन से भारत की इकोनॉमी को सबसे ज्यादा खतरा, जानिए कैसे?

locationजयपुरPublished: Jul 20, 2019 07:44:04 pm

Submitted by:

pushpesh

-संयुक्त राष्ट्र की पहले जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक विकासशील देशों का जलवायु परिवर्तन से निपटने का खर्च 300 करोड़ डॉलर और 2050 तक 500 करोड़ डॉलर तक पहुंच सकता है।

2030 तक विकासशील देशों का जलवायु परिवर्तन से निपटने का खर्च 300 करोड़ डॉलर तक पहुंच सकता है।

जलवायु परिवर्तन से भारत की इकोनॉमी को सबसे ज्यादा खतरा, जानिए कैसे?

जयपुर.

सल्टिंग फर्म मूडीज का अनुमान है कि वर्ष 2100 तक जलवायु परिवर्तन के चलते तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई तो वैश्विक अर्थव्यवस्था को 69 खरब डॉलर का नुकसान हो सकता है। रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया की 12 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से भारत सबसे ज्यादा प्रभावित होगा। देश का सेवा उद्योग गर्मी से सर्वाधिक प्रभावित होगा। कृषि उत्पादकता गिरेगी और स्वास्थ्य सुधार की लागत बढ़ जाएगी। फर्म ने चेतावनी दी है कि तापमान के दो डिग्री की सीमा को पार करने से जलवायु से जुड़े परिवर्तन हो सकते हैं, जैसे अभी गर्मियों में आर्कटिक की बर्फ पिघल रही है। रिपोर्ट में भविष्यवाणी की गई है कि तापमान बढऩे से श्रमिकों के स्वास्थ्य और उत्पादन पर बुरा असर पड़ेगा। साथ ही मौसम की प्रतिकूलताओं के कारण बुनियादी ढांचे और संपत्ति को नुकसान होगा। मूडीज के मुख्य अर्थशास्त्री मार्क जैंडी का कहना है कि यह केवल अर्थव्यवस्था के लिए ही नुकसान नहीं है, बल्कि इससे भी ज्यादा खतरनाक हो सकता है। नई रिपोर्ट में मानव स्वास्थ्य, श्रम उत्पादकता, फसल की पैदावार और पर्यटन के होने वाले नुकसान का उल्लेख किया गया है। इसके मुताबिक पानी और संक्रामण से फैलने वाली बीमारियां, जैसे मलेरिया और डेंगू का मानव के स्वास्थ्य पर सीधा असर पड़ता है। इससे उत्पादकता में कमी आती है। इन बीमारियों की देखभाल पर सार्वजनिक और निजी खर्च बढ़ेगा। इससे श्रम उत्पादकता पर फर्क पड़ेगा, बाहरी क्षेत्रों से आकर खेत में काम करने वाले श्रमिकों पर। तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले भारत, रूस, चीन, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील जैसे देश जलवायु परिवर्तन के इस नुकसान में शामिल हो सकते हैं।
नॉर्वे के अर्थशास्त्री ने सुझाए तीन अहम उपाय
नॉर्वे के अर्थशास्त्री एरिक वारेस के मुताबिक जलवायु परिवर्तन का दुनिया की अर्थव्यवस्था पर तीन तरह से असर पड़ेगा, खासकर ऊर्जा के क्षेत्र में। इसका समाधान है, लेकिन चुनौतीपूर्ण है। 2050 तक इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कोयले का सभी प्रकार से उपयोग रोकना होगा। तेल की मांग को आधा और प्राकृतिक गैस में दस फीसदी तक कटौती करनी होगी। कार्बन उत्सर्जन को कम करने के साथ ही अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देना होगा, जिससे प्रौद्योगिकी में तेजी आएगी। वारेस ने कहा कि 2030 तक आधे से अधिक वाहनों को इलेक्ट्रिक वाहन बनाने होंगे। बिजली की मांग दोगुनी होगी, लेकिन पवन और सौर ऊर्जा के उत्पादन में तेजी लाकर इसे पूरा किया जा सकता है।
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