scriptवर्चस्व के लिए शावक दिखा रहे ताकत, बाघ-बघेरे पीछे हटने को मजबूर | The defeat of relationships in the battle for supremacy, | Patrika News

वर्चस्व के लिए शावक दिखा रहे ताकत, बाघ-बघेरे पीछे हटने को मजबूर

locationजयपुरPublished: Oct 15, 2020 10:46:23 pm

Submitted by:

Amit Pareek

वन अभयारणों में बाघ-बघेरों का कुनबा बढ़ने से बढ़ी समस्या, टेरेटरी को लेकर संघर्ष के मामले आ रहे सामने

जयपुर. राज्य के वन अभयारणों में जहां बाघ-बघेरों का कुनबा बढ़ रहा है। वहीं दूसरी ओर उनमें टेरेटरी को लेकर संघर्ष के मामले भी सामने आ रहे हैं। नए शावक उम्र के आखिरी पड़ाव की ओर बढ़ रहे बाघ-बघेरों को ताकत के दम पर पछाड़ रहे हैं। कोई अपनी मां से उलझ रहा है तो हो कोई अपने भाई-बहनों को भगा रहा है। ऐसे में जंगल में चल रही इस लड़ाई में रिश्तों की हार हो रही है। साफ तौर पर यह बढ़ती उम्र के साथ घटती ताकत की ओर संकेत कर रहा है। साथ ही बूढ़े हो चले बाघ-बघेरों का दबदबा घट रहा है यह भी दर्शाता है। पेश है वन अभयारणों में पनप रहे हालात को लेकर रिपोर्ट।
एसटी-6 का दबदबा खत्म, एसटी 9 ताकतवर
सरिस्का में लंबे समय से चल रही एसटी 6 की बादशाहत अब फीकी पडऩे लगी है। वर्तमान में यहां एसटी 9 और एसटी 21 का वर्चस्व परवान पर है। हालांकि एसटी 6 का यहां कब्जा रहा है। उसने आपसी संघर्ष में जहां एसटी 4 को मौत के घाट उतार दिया था, वहीं दूसरी ओर वह अन्य बाघों को अपनी टेरेटरी में आने से रोकता था। अब वह ओझल नजर आ रहा है। इन दिनों एसटी 9 की मूवमेंट ज्यादा दिखाई दे रही है। सरिस्का फाउंडेशन के संस्थापक दिनेश दुर्रानी के अनुसार नए बाघों ने ताकत दिखाना शुरू कर दिया है। सरिस्का के लिए यह अच्छे संकेत हैं।
पहले मां को भगाया, अब बेटी से संघर्ष
रणथम्भौर अभयारण्य के प्रत्येक 10 से 15 किलोमीटर के एरिया में वर्चस्व की लड़ाई आए दिन देखने को मिलती है। इन दिनों बाघिन ऐरोहेड और उसकी शावक रिद्धि के बीच संघर्ष चल रहा है। हाल हीं दोनों के बीच लड़ाई के वीडियो वायरल होने के बाद दोनों का संघर्ष चर्चा में है। एरोहेड को अपनी टेरेटरी बनाने के लिए मां मछली से संघर्ष करना पड़ा था। अब वह बेटी से कर रही है। इधर, काले खेत समीप भी बीते दिनों दो बाघों के बीच लड़ाई हुई है। जिसमें नर शावक ने मादा शावक को पछाड़ दिया। जिससे वह हारकर भाग गई। ऐेसे में साफ है कि अब नए शावकों ने उम्र के पड़ाव पार कर चुके बाघों को हटाने की जोर आजमाइश शुरू कर दी है।
तीनों ट्रैक पर बहादुर का कब्जा
राजधानी के झालाना जंगल में भी बघेरों के बीच टेरेटरी की लड़ाई चल रही है। इन दिनों तीनों ट्रैक पर नर बघेरा बहादुर का कब्जा है वहीं खान एरिया में मादा बघेरा मिसेज खान के इलाके में नर बघेरे सुल्तान ने जगह बना ली है। इधर मंदिर के समीप मादा बघेरा फ्लोरा अपने शावक नर बघेरा सिंबा और नए शावक के साथ रह रही है। इनके अलावा मादा बघेरा आरती की बेटी पूजा जंगल छोड़कर
कर्पूरचंद्र कुलिश स्मृति वन को अपना ठिकाना बना चुकी है। कई बार यहां देखी गई है।
यहां इतने बाघ

रणथम्भौर 70
सरिस्का 20
मुकुंदरा 1

आपसी संघर्ष से बिगड़े हालात
-रणथम्भौर में गत वर्ष जनवरी में इण्डाला वन क्षेत्र में बाघ टी-85 यानी पैकमैन की मौत हो गई थी। सितम्बर भैरूपुरा वन क्षेत्र में बाघ फतेह के साथ संघर्ष में टी-9 घायल हो गया था। बाद में टी-9 ने उपचार के दौरान दम तोड़ दिया था।
-अप्रेल 2019 में कुण्डेरा रेंज में बाघ टी-64 के साथ बाघ टी-104 का संघर्ष हुआ। जिसमें बाघ टी-104 के पैर में घाव हो गया था। बाद में उसमें कीड़े पड़ गए थे।
-जून 2019 में टी-34 यानी कुंभा व टी-57 के बीच संघर्ष हुआ। जिसमें टी-34 घायल हो गया था।
– अक्टूबर 2019 में बाघिन के फेर में टी-57 व टी-58 में संघर्ष हुआ।
-सरिस्का में डेढ़ साल पहले आपसी संघर्ष में एसटी 6 ने एसटी 16 को घायल कर दिया था। कुछ दिन बाद ही उसकी मौत हो गई थी।
इसलिए टकराव की स्थिति
रणथंभौर में वर्तमान में 70 बाघ प्रवास कर रहे हैं। जो वहां के कुल एरिया के हिसाब से छोटा पड़ रहा है। इस वजह से वहां टकराव हो रहे हैं। इधर 20 वर्ग किमी. में फैले झालाना जंगल में 25 से ज्यादा बघेरे रहते हैं। यह जंगल भी छोटा पड़ रहा है, लेकिन यहां से बघेेरे समीप के जंगल की ओर मूवमेंट कर रहे हैं।
वर्चस्व की लड़ाई एक सतत प्रक्रिया है। हालांकि बाघों के बढ़ते कुनबे को देखते हुए रणथंभौर, सरिस्का में जंगल के समीप बसे गांवों का विस्थापन हो रहा है। इसके अलावा आसपास बसे दूसरे जंगलों से भी कनेक्ट करने के प्लान बनाए जा रहे हैं ताकि जंगल का विस्तार हो सके और यह लड़ाई भी नहीं हो। इसके लिए प्रयासरत हैं, जल्द ही समाधान होगा।
केसी मीणा, मुख्य वन संरक्षक
वन अभयारण्यों में भोजन, मैटिंग और टेरेटरी के लिए संघर्ष होते रहे हैं। रणथम्भौर, सरिस्का, मुकुंदरा में भी ऐसे हालात दिखे हैं। टेरेटरी की बात करें तो, सरकार अभी तक कामयाब नहीं हो सकी है। गांवों का विस्थापन धीमा चल रहा है। बाघ जंगल छोड़ दूसरे जिलों के जंगलों में टेरेटरी बना रहे हैं। यह गलत है। इस पर ध्यान देने की जरूरत है।
धर्मेंद्र खांडल, वन्यजीव एक्सपर्ट
(देवेंद्र सिंह राठौड़ की रिपोर्ट)
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