उन्होंने अपने जीवन में करीब 400 से 500 नाटक किए और उनके सभी नाटकों का मंचन देश-विदेशों में हो चुका है
b v karanth
भोपाल। थिएटर पारंपरिक विधा है, लेकिन, कुछ कलाकार ऐसे होते हैं, जो इतिहास लिख जाते हैं। शहर के ऐसे ही तीन कलाकार जिनके बिना थिएटर अधूरा ही नहीं, बल्कि कुछ भी नहीं लगता। शहर के ज्यादातर रंगमंच के ग्रुप कहीं न कहीं उन कलाकारों की वजह से ही हैं। उन महान हस्तियों ने भोपाल में ही नहीं देश-विदेश तक थिएटर को नई पहचान दी। आइए जानते हैं उन कलाकारों के बारे में…
शुरू किया था नया ट्रेंड
1975 में भोपाल में 1 महीने की अपनी पहली वर्कशॉप और पहला नाटक ‘रस गंधर्व’ करने वाले कर्नाटक के बी.वी. कारंत (बावा) बड़े ही सहज भाव से कला के हुनर सिखा देते थे। उन्होंने अपने जीवन में करीब 400 से 500 नाटक किए और उनके सभी नाटकों का मंचन देश-विदेशों में हो चुका है। कारंत शहर में एकमात्र ऐसे आर्टिस्ट थे, जिन्होंने प्रोफेशनल थिएटर के मायने समझाए, जिन्होंने थिएटर में लाइट, साउंड, कॉस्ट्यूम जैसी चीजें जोड़ीं।
भारत भवन इनकी पसंद
कारंत साहब को जिंदगी में परफैक्शन पसंद था। बनारस हिंदी विवि से पढऩे के कारण उनके नाटकों में संगीत का प्रभाव हमेशा रहा। कारंत साहब को भारत भवन का मंच सबसे पसंद था और उन्होंने ही भारत में वेस्टर्न थिएटर के कल्चर को खत्म किया। उनका मानना था कि भारतीय संस्कृति में जो बात है, वह कहीं नहीं। उन्होंने हिंदुस्तान में पहली बार भारतेन्दु हरिश्चंद्र नाटक किया। इसे दर्शकों ने इतना सराहा कि पाश्चात्य नाटक के भ्रम को पूरी तरह से तोड़ दिया गया।