scriptशहर के बाहरी हिस्से में बन रहे कचरे के पहाड़, नहीं चेते तो भविष्य के लिए नुकसानदेह | The mountains of garbage in the out of city, harmful for future | Patrika News

शहर के बाहरी हिस्से में बन रहे कचरे के पहाड़, नहीं चेते तो भविष्य के लिए नुकसानदेह

locationजयपुरPublished: Sep 14, 2018 08:16:11 am

Submitted by:

Ashwani Kumar

-कचरे का सही तरह से संयोजन हो तो गैस से लेकर पर्याप्त खाद तक मिल सकती, 1300 टन कचरा हो रहा डम्प

001

शहर के बाहरी हिस्से में बन रहे कचरे के पहाड़, नहीं चेते तो भविष्य के लिए नुकसानदेह

अश्विनी भदौरिया/जयपुर. शहर में सही तरह से कचरे का निस्तारण न होने से आने वाले सालों में लोगों के सामने दिक्कत खड़ी हो जाएगी। दूसरे महानगरों की तर्ज पर राजधानी में भी बाहरी इलाकों में कचरे के पहाड़ नजर आएंगे। अभी मथुरादासपुरा में तो कचरे में पहाड़ का आकार भी ले लिया है। अकेले मथुरादासपुरा में ही 1000 टन से अधिक कचरा रोज पहुंच रहा है। ऐसे में इस कचरे का उपयोग न होना आने वाले समय के लिए मुसीबत पैदा कर सकता है। दिल्ली और पूना में इन पहाड़ से नकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। कुछ शहरों में तो कचरा जलाया तक जाता है। ऐसे में जलने से डायोनिक्स जैसी जानलेवा गैस निकलती है।
ऐसे तो सब कुछ सही हो जाएगा
-500 टन कचरे से 40 टन खाद बनाई जा सकती है।
-एक टन कचरे से दो एलपीजी के सिलेंडर बनाए जा सकते हैं।
इस लिहाज से शहर के 1800 टन कचरे से प्रतिदिन 3600 एलपीजी के सिलेंडर बनाए जा सकते हैं। भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र की ओर से ऐसे ही बॉयो प्लॉन्ट तैयार किया गया है, जो कचरे का उपयोग करता है। मुम्बई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस, मुम्बई में अभी इसका उपयोग भी किया जा रहा है। केंद्र की ओर से इसका बनाने का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि समाज डम्पिंग यार्ड से मुक्त हो सके।
सूखे कचरे की जगह आ रहा गीला कचरा
लांगडिय़ावास में एक सीमेंट कम्पनी रोज 300 से 400 टन कचरा लेने में सक्षम है, लेकिन कम्पनी का काम देख रहे शलभ अग्रवाल कहते हैं कि सूखा कचरा तो दूर कचरे में मिट्टी से लेकर पेड़ पौधों के पत्ते तक आ रहे हैं। जबकि इनका यहां कोई काम नहीं है। यहां बनने वाले ईंधन का कम्पनी अपने सीमेंट प्लांट में उपयोग करती है
ऐसे होता यहां पर काम
पहले कचरे को काटने का काम होता है। लोहे और पत्थर के टुकड़ों को अलग किया जाता है। अगले चरण में मिट्टी को कचरे से दूर किया जाता है। इसके बाद बचे सामान को बारीक कर प्लॉन्ट पर भेजा जाता है। जहां इसे 1400 डिग्री सेंटीग्रेट से अधिक के तापमान पर जलाया जाता है।
कचरे की सम्पति बीनने वाले ले जाते
डम्पिंग जोन पहुंचते-पहुंचते कचरा दो से तीन हाथों के बीच निकलता है। ऐसे में रिसाइकिल होने वाला सामान इसमें से गायब हो जाता है।

एक्सपर्ट व्यू
सालों से डम्पिंग जोन पर पहुंचने वाले कचरे के निस्तारण की योजना बन रही है, लेकिन अब तक कोई योजना धरातल पर नहीं आ पाई है। डम्पिंग जोन बनाने से पहले नीचे ऐसी सतह का निर्माण कराना होता है, जिससे पानी जमीन में न जाए। राजधानी में ऐसा कुछ नहीं हुआ। डम्पिंग जोन की वजह से ग्राउंड वाटर प्रदूषित हो रहा है और इससे आस-पास के इलाकों में रहने वाले लोग प्रभावित हो रहे हैं। आने वाले समय में भयानक परिणाम सामने आएंगे।
-डॉ. अजीत भारद्वाज, सेवानिवृत, मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी (नगर निगम)
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो