scriptफाइलों में दबी जंगल की योजना, इधर बे-घर हो रहे बघेरे | The plan of the forest buried in the files, the houses are being shel | Patrika News

फाइलों में दबी जंगल की योजना, इधर बे-घर हो रहे बघेरे

locationजयपुरPublished: Feb 26, 2020 04:28:15 pm

Submitted by:

Om Prakash Sharma

-इन्डेप्थ स्टोरी: भोजन-पानी के इंतजाम न साधन-संसाधनों की पूर्ति, राम भरोसे विभाग
 

जयपुर. प्रदेश में बघेरों की संख्या में लगातार हो रहा इजाफा अच्छी सौगात है। सरकार और अफसर इनकी सुरक्षा, आवास और प्रेबेस(भोजन) की बात तो करते है लेकिन उनके प्लान मजह फाइलों में दबकर सिमट रह जाते है। इधर वर्चस्व की लड़ाई और भूख-प्यास से व्याकुल बघेरों की आबादी क्षेत्र में लगातार घुसपैठ आमजन और बघेरे दोनों में भारी पड़ रही है। राजधानी जयपुर से सटे जंगल के ८० वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में ५० से ज्यादा बघेरे है। ऐसे में सरकार ने महज झालाना जंगल को तो विकसित किया, लेकिन इससे जुड़े वनक्षेत्र गलता, नाहरगढ़, जयसिंहपुरा खोर और आमेर वन क्षेत्र के आसपास के क्षेत्र को विकसित करना भूल गए। यही वजह है कि, यहां विभाग को यहां न तो बघेरों की मौत का समय पर पता चलता है न जन्म का। यहां न तो सर्विलांस सिस्टम है न ही पर्याप्त स्टाफ और संसाधन है। यहां तक कि, शिकारी पकडऩे या रेस्क्यू में निजी वाहनों से जाने को मजबूर है। यही वजह है कि, जंगल से बे-घर होकर बघेरे भोजन-पानी की तलाश में आबादी क्षेत्र में आ रहे है। इस संबंध में अफसरों ने कई योजनाएं बनाई जो अभी तक शुरू नहीं हो सकी।
छोटा पड़ रहा झालाना, फिर भी ध्यान नहीं


– झालाना जंगल से जुड़े वनक्षेत्र में में गत दो माह में ७ शावक जन्मे।यहां कुल बघेरों की संख्या करीब ४० तक पहुंच गई जो कि इनके लिए खतरा है। क्योंकि छो जंगल घनी आबादी क्षेत्र के करीब इतनी तादाद में बघेरों का एक साथ रहना ठीक नहीं है। इसके बावजूद भी विभाग ने इनके प्रेबेस के भी इंतजाम नहीं है। जिससे यह आए दिन आबादी क्षेत्र में घुस रहे है। आगामी दिनों में परिणाम ओर ज्यादा घातक हो सकते है। इससे जुड़े गलता, नाहरगढ़, आमेर वनक्षेत्र को जोड़ते हुए एक कोरिडोर बनाने की जरूरत है ताकि एक स्थान से दूसरे स्थान जा सकें। साथ ही प्रेबेस के भी इंतजाम किए जाए।

अधूरा पड़ा लेपर्ड प्रोजेक्ट, बजट में भी भूले


-इधर प्रदेश में वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन और ट्यूरिज्म की सौगात के उद्देश्य देश में पहले लेपर्ड प्रोजेक्ट की कवायद पूर्ववती राज्य सरकार ने की थीं, लेकिन सरकार के बदलते ही प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में बंद हो गया। इसमें झालाना समेत आठ वन्यजीव अभयारण्यों को शामिल किया और केवल झालाना को तो विकसित कर दिया, लेकिन अन्य बजट के अभाव में अधूरे पड़े है। वहीं सरकार ने लगातार दूसरी बार भी बजट में इसका कोई जिक्र नहीं किया।

फैक्ट फाइल
– 80 से 100 वर्ग किमी. में फैला वनक्षेत्र।
-50 से ज्यादा बघेरे रहता यहां पर। इनकी सर्वाधिक संख्या झालाना जंगल में।
– 2 साल में एक दर्जन से ज्यादा पाए गए मृत।

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