बल्ब टूटे लेकिन हिम्मत नहीं सोनी ने बताया कि जब तीन साल पहले वो इस काम को करना शुरू किया। बारीक परत के कारण बल्ब पर डिजायन बनाने के वक्त यह अक्सर चटक जाता या टूट जाता। करीब 50 से 60 बल्बों के टूटने के बाद वो 15 वॉट के बल्ब पर बिना बल्ब के खराब हुए उस पर जड़ाई करने में कामयाब रहे। इस बल्ब पर जड़ाई में करीब 25 ग्राम कुन्दन (सोना) और 100 नगीने जड़े हुए हैं। इसे बनाने में करीब आठ महीने का समय लगा। सोनी इससे पहले बल्ब पर ही मोर का चित्र और गणेश जी का भी चित्र बल्ब पर उकेरा है।
साढ़े पांच लाख की लगी बोली सोनी की इस नायाब कृति को एक व्यापारी ने खरीदने के लिए 5.50 लाख रुपए तक की बोली लगाई है। लेकिन सोनी इसे केवल प्रदर्शित करने के ही इच्छुक थे। ऐसे ही इस बल्ब के बारे में सुनकर मुम्बई से एक व्यापारी सिर्फ इस बल्ब को देखने के लिए जयपुर आया था। बल्ब पर उन्होंने बदरूम का जाल की डिजायन में जड़ाई का काम किया है जिसकी झलक शीश महल आमेर और ताजमहल की बनी जालियों में आसानी से देखी जा सकती है।