मैदानी इलाकों पर यह असर - 45 से 48 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया शहरों का तापमान
- पहाड़ से टकराकर हवाएं नहीं हो रहीं जल्द ठंडी
- पुष्क में अरावली क्षेत्र से लुप्त हुआ लूणी नदी का उद्गम स्थल
- अजमेर, पुष्कर, नागौर, जैसलमेर, बीकानेर जिले में बढ़ रहा रेगिस्तान
- सदियों पुरानी जैव विविधता और वनस्पति में कमी
- अरावली पहाड़ पर अवैध कब्जे और बेरोकटोक खनन
...ऐसा है महत्ववज्रदंती: टूथपेस्ट में उपयोग होता है। मानव के दांतों के साथ अरावली के पत्थरों को मजबूत रखती है।
बापची: इसकी दवा दिमाग को ठंडा रखती है। इसके फल को रातभर पानी में भिगोने के बाद सुबह दूध के साथ प्रयोग में लिया जाता है। यह अरावली में ठंडक बनाए रखती है। गुल-ए-बनफशा: मनुष्य के दिमाग और शरीर में गर्मी तथा अरावली के पत्थरों को जल्द ठंडा करने में सहायक।
बहेड़ा: पेट के लिए त्रिफला चूर्ण और अरावली की अन्य औषधियों को खराब होने से बचाती है। करील: स्वादिष्ट अचार-मुरब्बा बनाने में उपयोग। अभी मौजूद हैं यह पौधे
औषधीय- खरणी, कुमठा, अमलताश, आंवला, तुलसी, बेल, करील, गुलर, बहेड़ा देसी बबूल, खैर, एरूंज, धोकड़ा, जूली फ्लोरा, नीम, खेजड़ी चुरैल, करंज, कचनार और अन्य।
झाड़ी प्रजाति- डासण, गागण, बेर, पियागण, खरेणा,वज्रदंती, थोर, गुल ए बनफशा। वृक्ष- खेजड़ी (राज्य वृक्ष), पीपल, नीम और अन्य। प्रदेश के इन इलाकों में फैलाव राजस्थान में अजमेर, उदयपुर, जयपुर, सिरोही, माउन्ट आबू, राजसमंद, अलवर और अन्य जिलों में अरावली पर्वतमाला सबसे विस्तृत है। यह करीब 692 किलोमीटर क्षेेत्र में फैली हुई है। अजमेर शहर और जिले में अरावली चेन शास्त्री नगर, कोटड़ा, सराधना, तारागढ़, पुष्कर-नाग पहाड, घूघरा घाटी, बीर, दांता, जतिया, सरवाड़, भिनाय, नसीराबाद, किशनगढ़, नूरियावास और ब्यावर के विभिन्न हिस्सों में नजर आती है। इसमें कई औषधीय पौधों का खजाना है। इनसे आयुर्वेदिक और यूनानी दवाएं बनती हैं।
औषधीय महत्व के पौधों की 2 हजार किस्में विलुप्त औषधीय पौधे और वनस्पति अरावली के तापमान को नियंत्रित करते रहे हैं। पत्थरों को मजबूत रखने, तेज गर्मी के बाद त्वरित ठंडा करने तथा छोटे-मोटे पौधों को खराब होने से बचाती रही हैं। इनके बने रहने से जीव-जंतुओं का भी पोषण होता है। खासतौर पर वानर, हिरण, पैंथर, भालू और अन्य वन्य जीवों को आवास एवं भोजन उपलब्ध होता है। लेकिन पिछले 20-25 साल में हालात बदल गए हैं। मदस विवि के शोध के मुताबिक अरावली क्षेत्र से करीब 2 हजार किस्म की वनस्पति विलुप्त हो चुकी हैं। इससे बंजर हुए पहाड़ तपने लगे हैं।
ग्लोबल वार्मिंग का असर 80 के दशक तक अरावली का तापमान ग्रीष्म काल में 15 से 20 डिग्री सेल्सियस और शीतकाल में 5 से 8 डिग्री सेल्सियस तक रहता था। लेकिन चालीस साल में हालात बदल गए हैं। अब अजमेर सहित जयपुर, सिरोही, राजसमंद, अलवर और अन्य जिलों में अरावली का सामान्य तापमान 30 से 35 डिग्री सेल्सियस तक रहने लगा है। कम बरसात से पहाड़ी इलाके में बहने वाले कई झरने बंद हो चुके हैं।
इनका कहना है अरावली पर्वतमाला थार मरुस्थल को बढ़ने से रोकने के अलावा प्रकृति और जैव विविधता की संरक्षक है। खनन, कम बरसात और वनस्पति में कमी से इसका तापमान धीरे-धीरे बढ़ रहा है। यह अच्छे संकेत नहीं हैं। 50 साल में अरावली का काफी दोहन हो चुका है। समय रहते नहीं संभले तो विश्व की प्राचीनतम पर्वतमाला खत्म होने के कगार पर पहुंच जाएगी।
डॉ. मिलन यादव, भूगोल विभागाध्यक्ष, एसपीसी-जीसीए