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रणथम्भौर में बढ़ सकता है बाघों का कुनबा, जल्द गूंजेगी किलकारी

locationजयपुरPublished: May 30, 2020 12:05:02 am

दो बाघिनों के मां बनने के आसार

रणथम्भौर में बढ़ सकता है बाघों का कुनबा, जल्द गूंजेगी किलकारी

(फाइल फोटो)

सवाईमाधोपुर. लॉकडाउन में प्रदेश के टाइगर रिजर्व में बाघों के कुनबे में इजाफा हो रहा है। अलवर के सरिस्का में दो बार शावकों की किलकारी गूंज चुकी है और चार शावकों का जन्म हो चुका है। वहीं अब रणथम्भौर में भी जल्द किलकारी गूंजने के आसार जताए जा रहे हैं। रणथम्भौर में करीब बीस दिनों से दो बाघिने नजर नहीं आ रही है। सूत्रों की माने तो दोनों बाघिनों ने शावकों को जन्म दिया है। ऐसे में इस समय दोनों बाघिन शावकों के साथ किसी एकांत जगह पर हैं। वनाधिकारी भी रणथम्भौर से जल्द ही गुड न्यूज आने की आस लगाए बैठे हैं।
टी-19 व टी-102 के मां बननेे के आसार

सूत्रोंं केे अनुसार रणथम्भौर के जोन चार में विचरण करने वाली बाघिन टी-19 यानि कृष्णा व फलौदी रेंज मेंं विचरण करने वाली बाघिन टी-102 के मां बनने के आसार हैं। इन दोनों बाघिनों को बाघों के साथ विचरण करते देखा गया था, जिसके कारण इनके मां बनने की संभावना और प्रबल हो गई थी।
मछली के बाद कृष्णा ने ही दिया सबसे अधिक शावकों को जन्म

मशहूर बाघिन मछली ने रणथम्भौर में सबसे अधिक शावकों को जन्म दिया था। करीब 20 साल तक जिंदा रही मछली ने 14 शावकों को जन्म दिया। वहीं अब मछली की बेटी कृष्णा ने अब तक ग्यारह शावकों को जन्म दे चुकी है। मछली के बाद रणथम्भौर में सबसे अधिक शावकों को जन्म मछली की बेटी बाघिन टी-19 यानि कृष्णा ने ही दिया है।
शारीरिक संरचना में नजर आया बदलाव

वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार गत दिनों रणथम्भौर के बैरदा वन क्षेत्र में टे्रकिंग कर रहे एक वनकर्मी को बाघिन कृष्णा की शारीरिक संरचना में बदलाव नजर आया था। ऐसे में बाघिन के शावकों के जन्म देने के कयास लगाए जा रहे हैं।
रणथम्भौर में 71 बाघ-बाघिन

वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार वर्तमान में रणथम्भौर में कुल 71 बाघ-बाघिन है। इनमें से 25 बाघ व 25 बाघिन व 21 शावक है।

इनका कहना है…
यह सही है कि कई दिनों से बाघिन कृष्णा व टी-102 नजर नहीं आ रही है। टी-19 बाघिन की शारीरिक संरचना में बदलाव नजर आया था। ऐसे में उसके शावकों को जन्म देने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। हालांकि अब तक शावकों के फोटो कैमरा ट्रैप में कैद नहीं हुए हैं।
-मुकेश सैनी, उपवन संरक्षक, रणथम्भौर बाघ परियोजना।

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