script‘मैं नन्हीं सी गुडिय़ा थी मुझे जीना था …’, मासूम से रेप मामले में मृत्युदंड देने से पहले महिला जज ने कविता से बताया दर्द | The woman judge told the pain of the rape victim girl with poetry | Patrika News

‘मैं नन्हीं सी गुडिय़ा थी मुझे जीना था …’, मासूम से रेप मामले में मृत्युदंड देने से पहले महिला जज ने कविता से बताया दर्द

locationजयपुरPublished: Dec 07, 2019 10:07:21 pm

फागी कस्बे में छह साल की मासूम के साथ बलात्कार एवं हत्या के मामले में आठ साल बाद आया फैसला, महिला जज ने कहा मासूम की पीड़ा की कल्पना नहीं की जा सकती, सख्त सजा देना न्यायालय का दायित्व

'मैं नन्हीं सी गुडिय़ा थी मुझे जीना था ...', मासूम से रेप मामले में मृत्युदंड देने से पहले महिला जज ने कविता से बताया दर्द

‘मैं नन्हीं सी गुडिय़ा थी मुझे जीना था …’, मासूम से रेप मामले में मृत्युदंड देने से पहले महिला जज ने कविता से बताया दर्द

देवेन्द्र शर्मा / जयपुर. 8 साल पहले फागी इलाके में घर में अकेली छह वर्षीय मासूम के साथ बलात्कार और हत्या करने के मामले में अपर सेशन न्यायालय दूदू ने अभियुक्त को मृत्युदंड की सजा से दंडित किया है। न्यायाधीश शिल्पा समीर ने अभियुक्त चाकसू निवासी महेन्द्र कुमार उर्फ धर्मेन्द्र कुमार (27) को बलात्कार, हत्या, अतिचार एवं चोरी का दोषी मानते हुए मृत्युदंड के अतिरिक्त 8.20 लाख रुपए का जुर्माने भी लगाया है।
कोर्ट ने कहा कि एक नन्ही सी बच्ची, जिसने अभी दुनिया भी नहीं दखी, उसके लिए तो जीवन मात्र खेल था, उसके नन्हे शरीर को अभियुक्त द्वारा निष्ठुरता से रौंदकर निर्दयता से हत्या की गई है। छह साल की बच्ची से बलात्कार बर्बरता की पराकाष्ठा है, उस नन्ही सी जान को अभियुक्त के कृत्य से कितनी पीड़ा हुई होगी, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। परिस्थितियों के तुलनात्मक अध्ययन से न्याय का पैमाना अभियुक्त के विरुद्ध झुकता है। अभियुक्त के क्रूर हाथों में मृतका असहाय बच्ची थी, जिसके द्वारा प्रतिरोध नहीं किया जा सकता था। बलात्कार कर बेरहमी से गला घोंटकर उसकी हत्या की है। यह केवल नृशंस ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण समाज को प्रभावित करने वाला अपराध है। यह सम्पूर्ण समाज की आत्मा को उद्वेलित करने वाला अपराध है।
कविता में झलका दर्द

यह घटना ऐसी है, जिसको सोचकर अहसास नि:शब्द हो जाते हैं, भावनाएं खामोश हो जाती हैं। मृतका की पीड़ा की अभिव्यक्ति को लफ्ज नहीं मिलते। पीडि़ता की खामोश हुई चीखों को, उसकी अव्यक्त असहनीय पीड़ा व उसकी आत्मा ने उस समय शायद यही कहा होगा…..
‘मैं नन्हीं सी गुडिय़ा थी मुझे जीना था,

हंसना था, खेलना था,

फिर क्यों इतना दर्द दिया,

बिना कसूर, बिना गलती के,

क्यों निष्ठुुरता से तोड़कर मुझको फेंक दिया।

यह था मामला
21.05.2011 को पीडि़ता के पिता ने फागी थाने में रिपोर्ट दी थी कि वह सुबह पत्नी के साथ मजदूरी पर गए थे। शाम को लौटे तो घर पर पुत्री व बकरा नहीं था। जानकारों के कहने पर वह थाने जा रहा था। पीछे से परिचितों ने कच्चे मकान के कमरे को खोलकर देखा तो बच्ची मृत पड़ी मिली। उसके गले पर सुतली बंधी हुई थी। बच्ची से बलात्कार, हत्या और चोरी की पुष्टि के बाद पुलिस ने जांच शुरू की। बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या के बाद आरोपी घर से उनका एक बकरा एवं घी की कैन चुराकर ले गया था। जिसे गांव में कई लोगों ने देखा था। पुलिस ने बाद में उसे गिरफ्तार कर लिया था।
साढ़े आठ साल पुराने मामले में सात दिन में सजा

मामले में पुलिस की ओर से कुछ अहम सबूतों को न्यायालय में पेश नहीं किया जा रहा था, जिसके चलते मामले में निर्णय नहीं हो पा रहा था। न्यायाधीश के इस मामले में पुलिस की देरी के बारे में डीजीपी को पत्र लिखने के बाद पुलिस ने 30 नवम्बर को सबूतों को पेश किया, जिसके एक हफ्ते में ही न्यायालय ने साढ़े आठ साल से लम्बित इस मामले में सजा सुनाई।
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