कोर्ट ने कहा कि एक नन्ही सी बच्ची, जिसने अभी दुनिया भी नहीं दखी, उसके लिए तो जीवन मात्र खेल था, उसके नन्हे शरीर को अभियुक्त द्वारा निष्ठुरता से रौंदकर निर्दयता से हत्या की गई है। छह साल की बच्ची से बलात्कार बर्बरता की पराकाष्ठा है, उस नन्ही सी जान को अभियुक्त के कृत्य से कितनी पीड़ा हुई होगी, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। परिस्थितियों के तुलनात्मक अध्ययन से न्याय का पैमाना अभियुक्त के विरुद्ध झुकता है। अभियुक्त के क्रूर हाथों में मृतका असहाय बच्ची थी, जिसके द्वारा प्रतिरोध नहीं किया जा सकता था। बलात्कार कर बेरहमी से गला घोंटकर उसकी हत्या की है। यह केवल नृशंस ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण समाज को प्रभावित करने वाला अपराध है। यह सम्पूर्ण समाज की आत्मा को उद्वेलित करने वाला अपराध है।
कविता में झलका दर्द यह घटना ऐसी है, जिसको सोचकर अहसास नि:शब्द हो जाते हैं, भावनाएं खामोश हो जाती हैं। मृतका की पीड़ा की अभिव्यक्ति को लफ्ज नहीं मिलते। पीडि़ता की खामोश हुई चीखों को, उसकी अव्यक्त असहनीय पीड़ा व उसकी आत्मा ने उस समय शायद यही कहा होगा…..
‘मैं नन्हीं सी गुडिय़ा थी मुझे जीना था, हंसना था, खेलना था, फिर क्यों इतना दर्द दिया, बिना कसूर, बिना गलती के, क्यों निष्ठुुरता से तोड़कर मुझको फेंक दिया। यह था मामला
21.05.2011 को पीडि़ता के पिता ने फागी थाने में रिपोर्ट दी थी कि वह सुबह पत्नी के साथ मजदूरी पर गए थे। शाम को लौटे तो घर पर पुत्री व बकरा नहीं था। जानकारों के कहने पर वह थाने जा रहा था। पीछे से परिचितों ने कच्चे मकान के कमरे को खोलकर देखा तो बच्ची मृत पड़ी मिली। उसके गले पर सुतली बंधी हुई थी। बच्ची से बलात्कार, हत्या और चोरी की पुष्टि के बाद पुलिस ने जांच शुरू की। बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या के बाद आरोपी घर से उनका एक बकरा एवं घी की कैन चुराकर ले गया था। जिसे गांव में कई लोगों ने देखा था। पुलिस ने बाद में उसे गिरफ्तार कर लिया था।
साढ़े आठ साल पुराने मामले में सात दिन में सजा मामले में पुलिस की ओर से कुछ अहम सबूतों को न्यायालय में पेश नहीं किया जा रहा था, जिसके चलते मामले में निर्णय नहीं हो पा रहा था। न्यायाधीश के इस मामले में पुलिस की देरी के बारे में डीजीपी को पत्र लिखने के बाद पुलिस ने 30 नवम्बर को सबूतों को पेश किया, जिसके एक हफ्ते में ही न्यायालय ने साढ़े आठ साल से लम्बित इस मामले में सजा सुनाई।