-यह विधेयक किसी भी स्तर पर असंवैधानिक नहीं है। विधेयक तैयार करते समय सरकार ने इस बात का पूरा ध्यान रखा है कि किसी भी धर्म के व्यक्ति के साथ कोई भेदभाव नहीं होगा, लेकिन जिन तीन पड़ोंसी मुल्कों के संविधान में लिखा है इस्लाम उनका राज्यधर्म है। इन मुल्कों में अल्पसंख्यकों को प्रताडि़त किया जाता है और उन्हें संरक्षण नहीं दिया गया है इसलिए इन प्रताड़ति शरणार्थियों को संरक्षण देने के लिए सरकार यह विधेयक लेकर आई है।
-शाह ने कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा कि हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी एवं ईसाइयों को भारत में शरणार्थी के रूप में रहते हुए वर्षों हो गए तो फिर उन्हें स्वीकार क्यों नहीं किया गया।
-इससे राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) से कोई लेना-देना नहीं है। हालांकि एनआरसी विधेयक आएगा तो वह उसके बारे में भी बेबाकी से सभी सवालों के जवाब देंगे।
-यह विधेयक विभिन्न धर्मों के प्रताड़ति समुदाय के लोगों को संरक्षण देता है, इसलिए इसमें कहीं भी संविधान के अनुच्छेद का उल्लंघन नहीं हुआ है।
-इन तीनों देशों में धार्मिक आधार पर प्रताडि़त लोगों को किसी भी आधार पर घुसपैठिया नहीं कहा जा सकता है।
-शरणार्थी और घुसपैठियों में अंतर होता है जो धार्मिक प्रताडऩा से बचने, स्त्रियों की इज्जत एवं स्वधर्म को बचाने के लिए आए, वे शरणार्थी हैं और जो बिना दस्तावेज के छिप कर घुस आये वो घुसपैठिया है।
-यह विधेयक उन्हें पूरे अधिकार देता है इसलिए शरणार्थी नीति की कोई जरूरत नहीं है।
-कुछ राजनीतिक दलों के लोग राजनीतिक फायदे के लिए दुष्प्रचार कर रहे हैं और विभिन्न राज्यों में रहने वाले शरणार्थियों को भ्रमित किया जा रहा है।
-मेरा आम आदमी से कहना है कि किसी के बहकावे में नहीं आएं। सरकार ने उनके लिए नागरिकता कानून बनाया है और उनके पास यदि कोई प्रमाण भी नहीं है तो भी उक्त छह समुदाय के शरणार्थियों को नागरिकता का अधिकार मिलेगा।
-1947 में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आबादी 23 प्रतिशत थी जो 2011 में घटकर 3.7 प्रतिशत रह गई है। इसी तरह से बंगालदेश में 1947 में 22 फीसदी अल्पसंख्यक थे, लेकिन 2011 में उनकी आबादी 7.8 रह गयी है। इसके ठीक विपरीत भारत में 1951 में 9.1 प्रतिशत मुसलमान थे, जिनकी आबादी 2011 में 14.5 प्रतिशत पहुंची है।