ये पति-पत्नी बता रहे हैं जयपुर के फुटपाथों का हाल
जयपुरPublished: Nov 03, 2018 01:30:04 am
कागजों में अहा, हकीकत में आह
ये पति-पत्नी बता रहे हैं जयपुर के फुटपाथों का हाल
जयपुर. केंद्रीय सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मन्त्री नितिन गडकरी ने बुधवार को ईज ऑफ मूविंग इंडेक्स की रिपोर्ट जारी की तो गुलाबीनगर की शान में एक और पन्ना जुड़ गया। रिपोर्ट में कहा गया कि पैदल चलने वालों के लिए देश के 20 बड़े शहरों में जयपुर सबसे बेहतर है। लेकिन क्या सचमुच ऐसा है? यह जानने के लिए डॉ. शेखर कपूर और उनकी पत्नी तनिशा ने पत्रिका के जरिए आपके लिए जायजा लिया। पढि़ए राहगीरों की राह का हाल उन्हीं की जुबानी।
अभी हम चौड़ा रास्ता पर हैं। दोपहर के लगभग 1.30 बजे हैं। त्यौहारी रौनक के बीच चारों तरफ गाडिय़ों का शोर है। अब गोलछा सिनेमा के सामने पहुंचे हैं। यहां फुटपाथ पर किसी ने फुटपाथ गाड़ी लगा रखी है। गुस्सा तो ऐसा आ रहा है, खरी-खरी सुना दें। लेकिन गाड़ी मालिक कहीं दिख नहीं रहा है। अब नेहरू बाजार में दाखिल हुए हैं। यहां खूब रौनक है। बीच सड़क पर चलना पड़ रहा है। अरे यह क्या? अचानक किसी गाड़ी वाले ने पीछे जोर से हॉर्न बजाया है। हम चौंक पड़े। सहम गए। लेकिन सड़क पर न चलें तो चलें कहां? फुटपाथ पर तो गाडिय़ां ही गाडिय़ां खड़ी हैं। फुटपाथ चलने के लिए छोडऩा चाहिए लेकिन इसे बाकायदा पार्किंग में बदला हुआ है। बरामदे में चलें तो भिड़ते-भिड़ाते आगे बढऩा पड़ता है। बरामदे मानो चलने के लिए नहीं सामान बेचने के लिए बनाए हों। आखिर अब बरामदे में ही चलना पड़ रहा है। यह ध्यान रखते हुए कि किसी से भिड़ें नहीं। वहां रखे दुकानों के सामान से न टकरा जाएं। कोई सामान टूट न जाए। उधर सड़क पर बार-बार जाम लग रहा है। लोग रेंग-रेंगकर चल रहे हैं।
अजमेरी गेट की ओर बढऩे पर कदमों में कुछ जगह गंदा पानी फैला हुआ है। कुछ जगह गंदगी पसरी हुई है। एक भाईसाहब ठेले को बीच रास्ते में खड़ा कर जूस बना रहे हैं। पीछे जाम लगा है, इससे उन्हें कोई सरोकार नहीं। एक गाड़ी वाले ने गुस्सा किया तो उन्होंने ठेले को जरा सा हिलाया है। बाजार में खरीदारी करने आए कई लोगों के चेहरे ऐसे लग रहे हैं, जैसे भीड़भाड़ और तंग बरामदों के बीच बेबस हों। वे त्यौहारी खुशी के बीच खरीदारी नहीं कर रहे बल्कि उन्हें जैसे कोई सजा मिली हो।
अब किशनपोल बाजार आ गए हैं। यहां तो फुटपाथ पर साइकिल की दुकानें सजी हैं। विक्रेताओं ने पटाखे और सजावटी सामान पसार रखा है। पटाखों की दुकानों के इर्द-गिर्द सिलेण्डर बेचते भी दिख रहे हैं। बाकी जगह पर और आधी सड़क तक गाडिय़ां खड़ी हैं। यहां राहगीरों के समक्ष सड़क पर चलने के सिवा कोई चारा नहीं है। लेकिन सड़क पर तो गाडिय़ों की रेलमपेल लगी है। कई जगह मिट्टी भी पड़ी है।
अब छोटी चौपड़ से त्रिपोलिया की ओर बढ़ रहे हैं। यहां मेट्रो के बोर्ड के पीछे से होकर निकलना बहुत खतरनाक है। छोटी सी गली से होकर भिड़ते-भिड़ाते आगे निकले हैं। विदेशी सैलानियों का समूह बरामदे से आ रहा है। वे भी परेशान दिख रहे हैं। क्या सोच रहे होंगे ये विदेशी? कैसा शहर है यह? यहां चलने को भी जगह नहीं है? क्या ये लोग दोबारा हमारे यहां आएंगे? यह सोचते हुए हम गलियों की ओर बढ़ रहे हैं। लेकिन गलियों की भी हालत खराब है। चलने के लिए यहां 4 फीट जगह भी नहीं है।
त्रिपोलिया गेट से बड़ी चौपड़ की ओर भी ऐसा ही हाल है। बरामदे और उसके आगे कहीं गाडिय़ां खड़ी हैं, कहीं कोई दीये बेच रहा है तो कोई सजावटी सामान। यहां भी पैदल चलना मुश्किल भरा है। यहां भी फुटपाथ छोड़ सड़क पर चलने को मजबूर हो रहे हैं। गाडिय़ों की सरपट के बीच। जान हथेली पर लेकर।
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पत्रिका के जरिए आपके लिए इन्होंने लिया आपकी राह का जायजा
– डॉ. शेखर कपूर और उनकी पत्नी तनिशा, फिल्म कॉलोनी, चारदीवारी
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यहां चले, दर्ज करते गए आंखों देखा हाल
– चौड़ा रास्ता
– नेहरू बाजार
– अजमेरी गेट
– किशनपोल बाजार
– इंदिरा बाजार
– छोटी चौपड़
– त्रिपोलिया बाजार
– बड़ी चौपड़