‘टीएवीआरÓ तकनीक का सफल प्रयोग करने वाले ह्रदय रोग विशेषज्ञ डॉ. दीपेश अग्रवाल ने बताया कि 65 वर्षीय शांति लाल सीने में दर्द, सांस की तकलीफ तथा बेहोसी की हालत में अस्पताल पहुंचे थे। ह्रदय की गति बढ़ी हुई थी। ह्रदय की कार्यक्षमता 15 प्रतिशत तक रह गई थी। इस वजह से ऑपरेशन संभव नहीं था। रोगी का एओर्टिक वॉल्व सिकुड़ा हुआ था और अंदरूनी दबाव के चलते ह्रदय का आकार बढ़ गया था। यह हार्ट फेलियर की स्थिति थी। ऐसे लक्षणों के साथ रोगी की जीवन आशा भी बहुत कम रह गई थी।
बिना सीना चीरे बदला हार्ट का वॉल्व
महात्मा गांधी अस्पताल के डॉक्टरों ने किया ऑपरेशन
पैर की नस से वायर के जरिए बदला एओर्टिक वॉल्व डॉ. दीपेश अग्रवाल ने बताया कि सामान्यत: हार्ट वाल्व के खराब होने पर उसे ऑपरेशन करके बदला जाता है। किन्तु अब उसकी जरूरत नहीं रही। वाल्व को इंटरवेशनल प्रक्रिया के जरिए भी बदला जा सकता है। खासकर यह तकनीक उन रोगियों के लिए उपयुक्त होती है जो हार्ट फेलियर की स्थिति मे हो अथवा जिनके ह्रदय की कार्यक्षमता कम रह गई हो। जांघ की फीमोरल आर्टरी के जरिए वायर के साथ सैल्फ एक्सपेंडिबल एओर्टिक वाल्व को हार्ट तक ले जाकर स्थापित कर दिया गया। इसके साथ ही एओर्टिक वॉल्व के पत्ते सामान्य रूप से ह्रदय से शरीर में खून के प्रवाह समय पर स्वत: ही खुलने व बंद होने लगे।
वरिष्ठ हार्ट सर्जन डॉ. बुद्धादित्य चक्रवर्ती ने बताया कि एओर्टिक वाल्व को बिना चीरे के बदला जाना एक जटिल प्रक्रिया हैं। ऐसे में किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए हार्ट सर्जन व अनुभवी कार्डियक एनेस्थीसिया विशेषज्ञ का होना बहुत जरूरी होता है। टीएवीआर प्रोसीजर टीम में डॉ. दीपेश अग्रवाल, डॉ. बुद्धादित्य चक्रवर्ती, डॉ. हर्षवर्धन, डॉ. रामानंद सिन्हा, डॉ. गौरव गोयल आदि प्रमुख सहयोगी रहे।