रणथम्भौर दुर्ग के भीरत स्थापित भगवान गणेश की यह ऐतिहासिक मंदिर ना केवल राजस्थान के निवासियों के लिए महत्व रखता है, बल्कि देशभर में त्रिनेत्र गणेश मंदिर का अपना एक अलग पहचान है। आस्था और चमत्कार की कहानियों से अटा पड़ा भगवान गणेश का यह मंदिर जितना प्राचीन है, उतना ही अधिक विदेश सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र भी है। रणथम्भौर दुर्ग से होते हुए इस मंदिर में जाने के लिए भक्तों को लगभग 1579 फीट की ऊंचाईयों को पार करना पड़ता है। इतना ही भक्तों की भीड़ के कारण रणथम्भौर की अरावली और विंध्याचल की पहाड़ियां गजानन के जयकारों से गूंजती रहती है।
इस प्राचीन मंदिर से जुड़ी कई ऐतिहासिक और धार्मिक कहानियां भी प्रचलित है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण महाराजा हमीरदेव चौहान ने करावाया था, और उन्होंने ऐसा एक स्वप्न देख करवाया था। दरअसल महाराजा हमीरदेव और अलाउद्दीन खिलजी के बीच सन् 1299-1301 के बीच रणथंभौर में युद्ध हुआ था, उस समय दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी के सैनिकों ने इस दुर्ग को चारों ओर से घेर लिया था। तो वहीं समस्या खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी ऐसे में एक महाराज को स्वप्न में भगवान गणेश ने कहा कि मेरी पुजा करो सभी समस्या दूर हो जाएंगी। इसके ठीक अलगे ही दिन किले किले के दीवार पर त्रिनेत्र गणेश की मूर्ति अंकित हो गई।और उसके बाद हमीरदेव ने गणेश भगवान द्वारा इंगित स्थान पर एक मंदिर का निर्माण करवाया। तो वहीं कई सालों से चला आ रहा युद्ध भी समाप्त हो गया।
माना जाता है कि पूरी दुनिया में केवल इस त्रिनेत्र गणेश मंदिर में भगवान गणपति देव अपने पूरे परिवार अपनी दोनों पत्नी रिद्दि और सिद्दि के अलावा पुत्र शुभ और लाभ के साथ विराजमान हैं। इतना ही नहीं पूरे भारत में प्रथम पूज्य गणेश की चार स्यवं-भू मंदिर माने जाते हैं, जिसमें रणथम्भौर का त्रिनेत्र गणेश मंदिर को प्रथम स्थान के रुप में माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि महाराजा विक्रमादित्य यहां हर बुधवार को उज्जैन से आकर मंदिर में विधिवत अराधना करते थे। तो वहीं जयपुर से इस प्राचीन मंदिर की दूरी लगभग 142 किलोमीटर है।
किवदंतियों के अनुसार भगवान राम ने जिस स्वयं-भू मूर्ति की पूजा की थी उसी मूर्ति को हमीरदेव ने यहाँ पर प्रकट किया और गणेशजी का मंदिर बनवाया। इस मंदिर में भगवान गणेश त्रिनेत्र रूप में विराजमान है जिसमें तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। पूरी दुनिया में यह एक ही मंदिर है जहाँ भगवान गणेशजी अपने पूर्ण परिवार, दो पत्नी- रिद्दि और सिद्दि एवं दो पुत्र- शुभ और लाभ, के साथ विराजमान है। भारत में चार स्वयं-भू गणेश मंदिर माने जाते हैं, जिनमें रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेशजी का मंदिर प्रथम माना जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि यहां लाखों की तादात में श्रद्धालु त्रिनेत्र गणेश जी के दर्शन के लिए आते हैं। और जो भी यहां सच्ची आस्था के साथ त्रिनेत्र गणेश की पूजा करता है, भगवान उसकी मनोकामना जरुर पूरी करते हैं। उसे ज्ञान, सौभाग्य और समृद्धि का आशीर्वाद भी देते हैं। सबसे खास बात विवाह के दिनों में यहां हजारों वैवाहिक निमंत्रण त्रिनेत्र गणेश जी नाम से आते हैं। किवदंतियों के मुताबिक, ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम जब लंका कूच कर रहे थे, तो इसी त्रिनेत्र गणेश जी का अभिषेक पूजन किया था। जिसके बाद त्रेतायुग में भगवान गणेश की यह प्रतिमा रणथम्भौर में स्वयंभू रूप में स्थापित हुई और उसके बाद लुप्त हो गई।