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राजस्थान हाईकोर्ट ने सुनाए गर्भस्थ शिशुओं को लेकर दो अहम फैसले

locationजयपुरPublished: Oct 20, 2019 01:41:26 am

Submitted by:

abdul bari

राजस्थान हाईकोर्ट ( rajasthan high court jodhpur ) ने 11 वर्ष पूर्व वाहन दुर्घटना में मृत गर्भस्थ शिशु ( Foetus ) की भी एक जिंदगी मानते हुए न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी को दावे के तौर पर ढाई लाख रुपए और ब्याज राशि अदा करने के आदेश दिए हैं।

जोधपुर/जयपुर।

राजस्थान हाईकोर्ट ( Rajasthan High Court ) ने गर्भस्थ शिशुओं को लेकर दो अहम फैसले सुनाए। एक फैसले में 11 वर्ष पूर्व वाहन दुर्घटना में मृत गर्भस्थ शिशु की भी एक जिंदगी मानते हुए न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी को दावे के तौर पर ढाई लाख रुपए और ब्याज राशि अदा करने के आदेश दिए हैं। वहीं, दूसरे फैसले में एक शिशु को जीवनदान दिया। कोर्ट ने 26 सप्ताह से गर्भवती नाबालिग ( minor Pregnant ) का गर्भ गिराने की अनुमति देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि जीवन लेने वाले को भी यह खूबसूरत दुनिया निहारने का हक है।
गर्भस्थ शिशु की भी एक जिंदगी, क्लेम देने के निर्देश

राजस्थान हाईकोर्ट ( rajasthan high court jodhpur ) ने 11 वर्ष पूर्व वाहन दुर्घटना में मृत गर्भस्थ शिशु ( Foetus ) की भी एक जिंदगी मानते हुए न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी को दावे के तौर पर ढाई लाख रुपए और ब्याज राशि अदा करने के आदेश दिए हैं।
न्यायाधीश डॉ. पुष्पेंद्रसिंह भाटी ने लखनऊ निवासी सोनिया की अपील पर यह आदेश दिया। याची के अधिवक्ता अनिल भंडारी ने कोर्ट को बताया कि 1 जुलाई, 2008 को अपीलार्थी पति के साथ कार में बाड़मेर से जोधपुर आ रही थी, तब एक वाणिज्यिक वाहन ने कुड़ी गांव के पास टक्कर मार दी। इससे उन्हें काफी चोटें आई। उसे अस्पताल ले जाया गया। इस दौरान उन्हें अहसास हुआ कि उसके गर्भ में 7 माह से पल रहे शिशु की मृत्यु हो गई है।
कोर्ट ने मुआवजा देने के आदेश दिए

मोटरयान दुर्घटना दावा अधिकरण बालोतरा ने 9 अगस्त 2010 को यह कहकर प्रार्थी का दावा खारिज कर दिया था कि गर्भवती महिला ने लखनऊ के निजी अस्पताल में 4 दिन बाद ऑपरेशन द्वारा मृत बालिका को जन्म दिया,जो विश्वसनीय नहीं है और यह नहीं माना जा सकता है कि दुर्घटना की वजह से गर्भ में पल रही शिशु की मृत्यु हुई। बीमा कंपनी की ओर से कहा गया कि अधिकरण ने दावा खारिज करने में कोई गलती नहीं की और अजन्मे बच्चे का कोई दावा नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने अपील मंजूर करते हुए कहा कि गर्भवती महिला के गर्भ में पल रहे शिशु की भी एक जिंदगी होती है। कोर्ट ने मुआवजा देने के आदेश दिए।

इधर, 26 सप्ताह का गर्भ गिराने की अनुमति से इनकार

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक अपूर्व निर्णय में 26 सप्ताह से गर्भवती नाबालिग का गर्भ गिराने की अनुमति देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि जीवन लेने वाले को भी यह खूबसूरत दुनिया निहारने का हक है। वह भी तब, जबकि नवजात के लालन-पालन के लिए एक संस्थान ने आगे आकर पहल की है। जिस दिन बच्चे की किलकारी गूंजेगी, उसे नवजीवन संस्थान में मातृत्व की छांव नसीब होगी। संस्थान उसका यशोदा मां की तरह लालन-पालन करेगा।
अपनी मां के माध्यम से एक 17 वर्षीय पीडि़ता की ओर से पेश याचिका को निस्तारित करते हुए न्यायाधीश दिनेश मेहता ने कहा, बलात्कार पीडि़ता के जीवन के अधिकार का संरक्षण जरूरी है, लेकिन जन्म लेने वाले बच्चे के जीवन के अधिकार की भी अनदेखी नहीं की जा सकती। बलात्कार पीडि़ता को मानसिक और शारीरिक वेदना से बचाने के लिए गर्भपात की अनुमति दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि पैदा होने वाला बच्चा उसे हमेशा खुद के साथ हुए अत्याचार की याद दिलाता रहेगा। कोर्ट ने सवाल किया, क्या ऐसे मामलों में बच्चे और मां के बंधन को खत्म करने का यही एकमात्र तरीका है? जवाब में कोर्ट ने ही कहा – शायद नहीं। ऐसे बंधन को अन्य तरीकों से भी समाप्त किया जा सकता है।
न्यायाधीश मेहता ने कहा, हमारे सामने एक ही दुविधा है – जीवन और मृत्यु का प्रश्न। एक तरफ पीडि़ता के गरिमापूर्ण जीवन का सवाल है, जिसके लिए उसने अपनी मां के माध्यम से गर्भपात की याचना की है। दूसरी तरफ एक गर्भस्थ शिशु है, जिसकी अभी कोई आवाज नहीं है। एक ओर 26 सप्ताह के गर्भ की समाप्ति है, दूसरी ओर एक स्वयंसेवी संस्था उस बच्चे की पालनहार बनने को तत्पर है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि संविधान प्रदत्त जीवन जीने का अधिकार केवल पीडि़ता का ही नहीं, बल्कि गर्भस्थ शिशु का भी है, जब तब कि उसके कारण मां के जीवन को खतरा पैदा न जाए।
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