दरअसल, जोधपुर जिले के भोपालगढ़ में स्थित बागोरिया गांव की ऊंची पहाड़ियों पर विराजमान माता रानी के इस मंदिर में पिछले 600 सालों से एक मुस्लिम परिवार पुजारी बनकर देवी मां की सेवा कार्य में लगा हुआ है। फिलहाल इस मंदिर के पुजारी जमालुद्दीन खां हैं। इस मंदिर में जाने के लिए श्रद्धालुओं को 500 सीढ़ियां और 11 पोल को पार करना पड़ता है।
सबसे खास बात कि इस मंदिर के पुजारी का परिवार रोजा रखने के साथ मां की उपासना भी करते हैं। लेकिन इनके परिवार का जो भी सदस्य मंदिर का पुजारी बनता है, वह नमाज नहीं पढ़ता है, बावजूद इसके उसे इजाजत होती है कि वो नमाज और देवी मां की अराधना-पूजा एक साथ कर सकता है। तो वहीं इस गांव के लोगों के मुताबिक, इस मंदिर के पुजारी जमालुद्दीन नवरात्र के दौरान लोगों के यहां हवन और अनुष्ठान भी करवाते हैं। जबकि देवी मां की भक्त जमालुद्दीन नवरात्र के समय नौ दिनों तक मंदिर में ही रहते हैं और उपवास करने के साथ माता रानी की उपासना करते हैं।
इस अनूठी सांप्रदायिक सोहार्द और देवी मां की अराधना और भक्ति के बारे में 80 वर्षीय जमालुदीन खां (भोपाजी जमाल खांजी) का कहना है कि 600 साल पहले सिंध प्रांत में भारी अकाल पड़ने के बाद उनके पूर्वज यहां आकर बस गए। लेकिन इसके पीछे की कहानी ऐसी है कि उस समय अकाल के कारण इनके पूर्वज ऊंटों के काफिले को लेकर मालवा जा रहे थे, तभी कुछ ऊट रास्ते में बीमार पड़ गए और उन्हें यहां रुकना पड़ा। जिसके बाद रात को देवी मां ने इनके पूर्वज को सपने में आकर दर्शन दिए और कहा कि नजदीक के बावड़ी में रखी मूर्ति से भभूत निकाल ऊंट को लगा दो वो ठीक हो जाएंगे। फिर जमालुदीन खां के पूर्वजों ने भी ऐसा ही किया और ऊंट ठीक हो गए।
इस घटना के बाद माता के आदेशानुसार भोपाजी के पूर्वज यहीं बस गए और देवी मां की पूजा-अराधना करने लगे, जिसके बाद से इनके परिवार में ये परंपरा चल पड़ी और आज भी इस मंदिर में इनके ही परिवार का सदस्य पुजारी बनकर मां की उपासना और अराधना कर उनकी सेवा करता है। तो वहीं वर्तमान में इस मंदिर के पुजारी जमालुद्दीन खां पिछले 50 सालों से इस मंदिर में पूजा करवाते आ रहे हैं।