रिसर्च का दावा…
हाल ही नॉर्वे में हुई एक रिसर्च के अनुसार अन्य सोशल साइट के मुकाबले फेसबुक इस्तेमाल करना एक लत के समान है। इससे लोगों में बर्जन फेसबुक एडिक्शन स्केल (बीएफएएस) नामक व्यावहारिक समस्या सामने आई है। पुरुषों की तुलना में ऐसी महिलाएं जिन्हें बेचैनी ज्यादा रहती है वे इसकी अधिक शिकार हैं। इस वजह से मूड स्विंग, धैर्य की कमी, अकेले रहने के साथ एकाग्रता भी घटाती है। इसके अलावा सोशल साइट पर गैरमौजूदगी से उनमें बेचैनी बढऩे लगती है। सोशल साइट पर जाने से उन्हें सुकून मिलता है।
साइबर बुलिंग के हो रहे शिकार
सोशल मीडिया पर जाने-अनजाने बढ़ रहे साइबर बुलिंग के मामलों से कई तरह के दुष्प्रभाव सामने आ रहे हैं। इसके लिए जागरूकता जरूरी है।
डिप्रेशन का कारण
नियमित जुड़े रहने से जब भी व्यक्ति खुद को सोशल मीडिया के विभिन्न स्रोतों से दूर रखता है तो दिमाग में छूटी अपडेट्स का अफसोस होता है। इससे बेचैनी और डिप्रेशन बढ़ता है। वहीं इनके प्रयोग के दौरान गलत मुद्रा में बैठने व लेटने के कारण अच्छी नींद व सुबह उठने पर थकान महसूस होती है।
दिमाग के ग्रे और वाइट पार्ट का कार्य होता धीमा
दिमाग का ग्रे पार्ट इंटरनेट व गेमिंग खेलते समय सक्रिय होता है। यह प्रोसेसिंग के समय प्लानिंग, मैनेजिंग, ऑर्गेनाइजिंग करता है। दिमाग के इस हिस्से पर असर पडऩे से दिमाग सिकुडऩे लगता है जिससे याद्दाश्त में कमी व चलने-फिरने में दिक्कत हो सकती है। लंबे समय तक गैजेट की स्क्रीन देखने से दिमाग के वाइट मैटर पर असर होता है। इससे यह अलर्ट सिग्नल नहीं दे पाता है। गैजेट्स से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक किरणें दिमाग के जीन्स में बदलाव कर ब्रेन ट्यूमर और कैंसर जैसी घातक बीमारियों की आशंका बढ़ाती है। लगातार आंखों को स्क्रीन पर गड़ाए रखने से कॉर्निया पर होने वाले खिंचाव से देखने में दिक्कत हो सकती है। कई बार धुंधला दिखने व बार-बार पानी आने की दिक्कत होती है। अभिभावकों और बच्चों सभी को सोशल मीडिया एडिक्शन से बचना चाहिए।
डॉ. एस. के. जैन, सीनियर प्रोफसर व यूनिट हैड न्यूरो सर्जरी, एसएमएस अस्पताल, जयपुर