वसुंधरा राजे ने शुरू की थी परम्परा दरअसल, विधायक दल की बैठक में देरी से पहुंचने पर जुर्माना लगाए जाने की परम्परा साल 2014 में शुरू की गई थी। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने विधायक दल के साथ ही मंत्रिपरिषद की बैठकों में लेटलतीफ विधायकों पर जुर्माना लगाने की व्यवस्था शुरू की थी।
मंशा थी कि इन महत्वपूर्ण बैठकों में सभी विधायक समय पर पहुंचें और उनमें ये प्रवृति हमेशा के लिए बनी रहे। तय हुआ था कि मंत्रिपरिषद की बैठक में देर से पहुंचने पर मंत्रियों को 500 रुपए जबकि मुख्यमंत्री को एक हजार रुपए जुर्माना देना होगा। वहीं, भाजपा विधायक दल की बैठक में देरी से पहुंचने वाले विधायकों को भी 500 रुपए जुर्माना विधायक दल कोष में जमा कराने की व्यवस्था की गई।
उस दौरान राजे ने मंत्रियों से बैठक में एजेंडे पर विचार-विमर्श के लिए आवश्यक अध्ययन करने के लिए भी कहा था। साथ ही मंत्रियों से कहा गया था कि बैठक में जिन विषयों पर चर्चा होनी है उनके बारे में वे विशेषज्ञों से राय-मशविरा करके आएं। राजे ने विधानसभा अध्यक्ष से भी आग्रह किया था कि सभी दलों के विधायक सदन में पूरे समय मौजूद रहें इसके लिए आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए जाएं। इसके अलावा विधानसभा में विधायकों की उपस्थिति सुनिश्चित कराने के लिए संबंधित विधायक दल के नेताओं से भी आग्रह किया गया था।
फिलहाल ‘ताज़ा’ बैठक में नहीं आईं राजे बहरहाल गुरुवार को हुई भाजपा विधायक दल की बैठक में खुद पूर्व सीएम वसुंधरा राजे मौजूद नहीं रहीं। हालांकि नेता प्रतिपक्ष कटारिया ने कहा कि राजे ने किसी कारणवश नहीं आ पाने की सूचना दे दी थी। बैठक में आरएलपी के विधायक भी नहीं पहुंचे। इस बैठक में प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया, राष्ट्रीय सह संगठन प्रभारी वी. सतीश, प्रदेश संगठन महामंत्री चंद्रशेखर, उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ की मौजूदगी में हुई बैठक में भाजपा के 57 विधायक उपस्थित थे।
विधायक दल की बैठक में विधानसभा सत्र के दौरान सत्तापक्ष को घेरने की रणनीति पर चर्चा की गई। सत्र के मद्देनजर पार्टी ने व्हिप भी जारी किया है। नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने व्हिप जारी करते हुए विधायकों से कहा कि किसी भी विषय पर मतदान हो तो पार्टी के पक्ष में मतदान करें।
कानून तोड़ा तो सामना करेंगे
बैठक के बाद कटारिया ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि सरकार की सबसे बड़ी विफलता का द्योतक है, इस बार का विधानसभा सत्र बुलाना। एससी-एसटी आरक्षण का मामला दिसंबर में ही लोकसभा और राज्यसभा में पारित हो गया। इसमें आधे राज्यों की सहमति भी आवश्यक होती है। यह सहमति दुर्भाग्य से राजस्थान की सरकार और राजस्थान का प्रशासनिक तंत्र नहीं दे पाया। कांग्रेस सरकार इस तरह निर्लज्जता का काम कर रही है। इसे 25 जनवरी तक पास कराना है। क्या राज्य सरकार इसे 15 दिन पहले नहीं कर सकती थी? सरकार की लापरवाही के कारण विधानसभा की परम्पराओं को ताक पर रखकर आनन फानन सत्र बुलाया गया है। मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, जिसमें चार सप्ताह का समय दिया गया है। न्यायालय में लंबित केस पर विधानसभा में चर्चा नहीं हो सकती। चर्चा कर कानून तोड़ा गया तो हम उचित तरीके से सामना करेंगे।
अभिभाषण सुनो और घर चले जाओ!
कटारिया ने कहा कि राज्यपाल के अभिभाषण का सत्र 21 दिन के नोटिस पर बुलाया जाता है। इतिहास में पहली बार आनन-फानन सूचना पर सत्र बुलाया गया है। विधायकों को इन्हीं 21 दिन में अपने प्रश्न तैयार करने का समय मिलता है लेकिन विधायक न तो प्रश्नों की तैयारी कर पाए, न सरकार राज्यपाल के अभिभाषण की तैयारी कर पाई।
कटारिया ने कहा कि राज्यपाल के अभिभाषण का सत्र 21 दिन के नोटिस पर बुलाया जाता है। इतिहास में पहली बार आनन-फानन सूचना पर सत्र बुलाया गया है। विधायकों को इन्हीं 21 दिन में अपने प्रश्न तैयार करने का समय मिलता है लेकिन विधायक न तो प्रश्नों की तैयारी कर पाए, न सरकार राज्यपाल के अभिभाषण की तैयारी कर पाई।