आपको बता दें इस दिन वट (बरगद) के पूजन का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश वट वृक्ष में ही रहते हैं। अखंड सौभाग्य की कामना के लिए महिलाएं बड़ के पेड़ का पूजन कर कथा सुनती हैं। बड़ के पेड़ के पत्तों को गहने के रूप में धारण करती हैं। पंडित सुरेश शास्त्री ने बताया कि इस बार वट सावित्री व्रत के दिन विशेष संयोग पड़ रहा है। अमावस्या पर शनि जयंती भी है। प्रात:काल बड़ के पेड़ का पूजन कर महिलाएं अखण्ड सौभाग्य की कामना करती हैं। पेड़ को रोली मोली चढ़ाकर कच्चा सूत लपेटती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन ही सावित्री ने अपने दृढ़ संकल्प और श्रद्धा से यमराज द्वारा अपने मृत पति सत्यवान के प्राण वापस पाए थे। महिलाएं भी इसी संकल्प के साथ अपने पति की आयु और प्राण रक्षा के लिए व्रत रखकर पूरे विधि विधान से पूजा करती हैं।
प्रातःकाल घर की सफाई कर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें।
प्रातःकाल घर की सफाई कर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें।
इसके बाद पवित्र जल का पूरे घर में छिड़काव करें। फिर एक टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना करें। ब्रह्मा के वाम पार्श्व में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें।
इसके बाद ब्रह्मा तथा सावित्री का पूजन करें।
पूजा के दौरान धागे को वट वृक्ष पर 5, 11, 21, 51 या 108 बार प्रक्रिमा करते हुए लपेटे।
इसके बाद ब्रह्मा तथा सावित्री का पूजन करें।
पूजा के दौरान धागे को वट वृक्ष पर 5, 11, 21, 51 या 108 बार प्रक्रिमा करते हुए लपेटे।
सावित्री और सत्यवान की पूजा करके बड़ की जड़ में पानी दें। बरगद के पेड़ की पूजा त्रिदेव के रूप में ही की जाती है। अगर आप बरगद के पेड़ के पास पूजा करने नहीं जा सकते हैं तो आप अपने घर में ही त्रिदेव की पूजा करें। साथ ही अपने पूजा स्थल पर तुलसी का एक पौधा भी रख लें। अगर उपलब्ध हो तो आप कहीं से बरगद पेड़ की एक टहनी तोड़ कर मंगवा लें और गमले में लगाकर उसकी पारंपरिक तरीके से पूजा करें।
पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें।
पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें।
जल से वटवृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर परिक्रमा करें। बड़ के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री की कथा सुनें। भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, नकद रुपए रखकर सास के चरण-स्पर्श करें।
यदि सास वहां न हो तो बायना बनाकर उन तक पहुंचाएं। पूजा समाप्ति पर निर्धन सौभाग्यवती महिला को सुहाग की सामग्री का दान करें।