देवनानी ने दूूसरे ट्वीट में लिखा, वीर सावरकर के मुंबई स्थित स्मारक के लिए इंदिरा गांधी ने अपने व्यक्तिगत खाते से उस वक़्त 11 हजार रुपए का सहयोग दिया था। इंदिरा ने सार्वजनिक तौर पर वीर सावरकर के स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान को सराहा और फिल्म्स डिवीज़न ने सावरकर पर फिल्म भी बनाई।
उन्हनें अपने तीसरे ट्वीट में लिखा, प्रदेश की कांग्रेस सरकार को न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार स्वतंत्रय वीर सावरकर जी के बलिदान के पश्चात् इंदिरा गांधी जी द्वारा दिए गए बयान से प्रेरणा लेनी चाहिए। जिसमें उन्हें “साहस व देशभक्ति का प्रतीक“,एक देशभक्त क्रांतिकारी एव असंख्य लोगों का प्रेरणा पुरुष बताया था।
बता दें कि रविवार को भी देवनानी ने एक Tweet कर कहा था कि राजस्थान की कांग्रेस सरकार के द्वारा वीर सावरकर को ‘पुर्तगाल का पुत्र’ कहा जाना एक स्वातंत्र्य वीर का अपमान है। राज्य की कांग्रेस सरकार का एक ही एजेंडा है, भारतीय संस्कृति और प्रदेश के वीर एव वीरांगनाओं का अपमान करना व एक परिवार विशेष का बखान करना।
मालूम हो कि राजस्थान में पिछली राजे सरकार के कई फैसले पलट चुकी गहलोत सरकार ने स्कूली पाठ्यक्रम में सावरकर की जीवनी वाले हिस्से में बदलाव किया है। विनायक दामोदर सावरकर को तीन साल पहले भाजपा सरकार में तैयार सिलेबस में वीर, महान देशभक्त और महान क्रांतिकारी बताया गया था। लेकिन अब कांग्रेस शासन में नए सिरे से तैयार स्कूली पाठ्यक्रम में उन्हें वीर नहीं बताकर जेल की यातनाओं से परेशान होकर ब्रिटिश सरकार से दया मांगने वाला बताया है।
राजे सरकार ने ये पढ़ाया
वीर सावरकर की जीवनी की शुरुआती कुछ लाइनों में लिखा था कि वीर सावरकर महान क्रांतिकारी, महान देशभक्त और महान संगठनवादी थे। उन्होंने आजीवन देश की स्वतंत्रता के लिए तप और त्याग किया। उसकी प्रशंसा शब्दों में नहीं की जा सकती। सावरकर को जनता ने वीर की उपाधि से विभूषित किया। अर्थात वे वीर सावरकर कहलाए। भाजपा शासन में पढ़ाया गया था कि सावरकर ने अभिनव भारत की स्थापना 1904 में की थी।
गहलाेत सरकार अब ये पढ़ाएगी
सावरकर की जीवनी में नए तथ्य जाड़े गए हैं। लिखा है कि जेल के कष्टों से परेशान होकर सावरकर ने ब्रिटिश सरकार के पास 4 बार दया याचिकाएं भेजी थी। इसमें उन्होंने सरकार के कहे अनुसार काम करने और खुद को पुर्तगाल का पुत्र बताया था। ब्रिटिश सरकार ने याचिकाएं स्वीकार करते हुए सावरकर को 1921 में सेलुलर जेल से रिहा कर दिया था और रत्नागिरी जेल में रखा था।
यहां से छूटने के बाद सावरकर हिंदु महासभा के सदस्य बन गए और भारत को एक हिंदू राष्ट्र स्थापित करने की मुहिम चलाते रहे। दूसरे विश्वयुद्ध में सावरकर ने ब्रिटिश सरकार का सहयोग किया। वर्ष 1942 में चले भारत छोड़ो आंदोलन का सावरकर ने विरोध किया था। महात्मा गांधी की हत्या के बाद उन पर गोडसे का सहयोग करने का आरोप लगाकर मुकदमा चला। हालांकि बाद में वे इससे बरी हो गए। सावरकर ने अभिनव भारत की स्थापना 1906 में की थी।