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जोधपुर में एक आश्रम है, जो जिंदगी को जीने का आध्यात्मिक दृष्टिकोण आपको देगा। साथ ही देगा एक ऐसा नजरिया जो महिला होने पर आपको गर्व महसूस करवाएगा और यदि आप उन्हें दोयम दर्जे का समझते हैं, तो आपकी आंखें खुल जाएंगी।
धर्मनगरी के रूप में विख्यात जोधपुर के भोगिशैल की तपसिद्धि से तरंगित पर्वतमालाओं से घिरे न्यू चांदपोल रोड के पर्वत शिखर पर स्थित संत अजनेश्वर आश्रम विश्व का अनूठा महिला संत आश्रम है, जहां दीक्षित सभी महिला संतों के नाम पुरुषों जैसे हैं। विशाल परिसर में फैले 152 वर्ष प्राचीन आश्रम में किसी भी तरह की भेंट राशि देना सख्त मना है।
यदि कोई भूल से भी पैसा या रुपया रख भी देता है तो उस स्थल का शुद्धीकरण किया जाता है। आश्रम का कार्य श्रद्धालुओं के सहयोग से चलता है। यहां आने वाले श्रद्धालु आश्रम में जरूरत के सामान लाते हैं। सूर्यास्त के बाद आश्रम में शाम के बाद पुरुषों का प्रवेश पूरी तरह निषेध है।
10 संत आश्रम में विराजित सवा सौ साल पूर्व संत अजनेश्वर ने आश्रम की पथरीली चट्टान पर कड़ी तपस्या की थी। विक्रम संवत 1984 में ब्रह्मलीन होने पर श्रद्धालुओं ने पास में ही उनकी स्मृति में आश्रम बनवाया। आश्रम से जुड़ी महिला संत कल्लाराम, बालेश्वर, तुलसीदास आश्रम के पीठाधीश रहे। वर्तमान में गुप्तेश्वर, गोपेश्वर, देवेश्वर, नर्बदेश्वर, संदेश्वर, संतोषदास, अल्केश्वर, मनोहरदास, दुर्गेश्वर सहित 10 संत यहां विराजित हैं। बुजुर्ग संतों की सेवा के लिए महिला सेवादार भी हैं। अनुयायी महिलाएं भी आश्रम में नियमित सेवा करती हैं। संतों के भोजन की व्यवस्था श्रद्धालुओं की ओर से होती है। नियमित होने वाले धार्मिक आयोजन में जीवन को सार्थक बनाने वाले प्रेरणादायक संदेश समाहित होते हैं।
अल्पायु में विवाह से वैराग्य की प्राप्ति संत अजनेश्वर ने 152 साल पूर्व (विक्रम संवत 1920 ) यानी सन 1863 में 12 वर्ष की अल्पायु में संन्यास ग्रहण किया था। पिता श्रीराम कच्छवाह के साथ कुंजबिहारी
मंदिर दर्शनार्थ जाया करती थीं। अल्पायु में ही विवाह हुआ, लेकिन ससुराल कभी नहीं गईं। वैराग्य उत्पन्न होने के बाद काशी में संस्कृत का अध्ययन किया और ओमकार की उपासना की। एक चामत्कारिक घटना से प्रभावित तत्कालीन जोधपुर नरेश सरप्रताप ने संत अजनेश्वर को फतेह बुर्ज भेंट किया था।
बन गई आध्यात्मिक पाठशाला बालविवाह, बालिका शिक्षा एवं धार्मिक आडम्बरों को अत्यंत जानने के बाद मात्र 12 वर्ष की उम्र में संत बने अजनेश्वर (मूल नाम अंजनी देवी) ने शरणागत आने वाले सैकड़ों विधवा एवं लाचार असहाय महिलाओं को शरण देना आरंभ किया। दशकों पूर्व ही एेसा आश्रम प्रारंभ किया, जिसमें विधवा सम्मान, त्याग और संयम से रहकर सुरक्षित जीवन व्यतीत कर सके। संत की ओर से विधवाओं को त्यागमय जीने की प्रेरणा चलते आश्रम उनके लिए आध्यात्मिक पाठशाला बन गई।
सभी धर्म के बच्चों के लिए शिक्षा वर्तमान पीठाधीश संत शांतेश्वर की प्रेरणा से महामंदिर क्षेत्र में अजनेश्वर विद्यालय का संचालन किया जा रहा है, जिसमें सभी धर्म जाति के बच्चों के लिए न्यूनतम शुल्क पर अध्ययन की व्यवस्था है। स्कूल संचालक दीपक शर्मा ने बताया आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को संस्कारों के साथ कम्प्यूटर शिक्षा भी प्रदान की जाती है।
नाम का अहंकार रहे, तो कैसा संत सृष्टि में पुरुष और प्रकृति विद्यमान है। पुरुष नाम के अधिष्ठाता भगवान स्वयं श्रीहरि हैं। भगवान सम्पूर्ण प्रकृति में और सम्पूर्ण प्रकृति भगवान में समाहित है। वास्तविक संन्यास के बाद न तो यह शरीर पुरुष और ना ही स्त्री। इसका भान होना भी संन्यास की मर्यादा को तोड़ता है। संन्यास के बाद शरीर सच्चिदानंद स्वरूप होता है। आश्रम में दीक्षित संतों का नया जन्म होना माना जाता है, इसीलिए नामकरण भी पुरुषों के नाम पर ही होता है। पुरुष नाम केवल परमपिता परमेश्वर श्रीकृष्ण का है। संत बनने के बाद भी यदि नाम का अहंकार रहे, तो वह कैसा संत। -संत शांतेश्वर, पीठाधीश, अजनेश्वर आश्रम