आखिर किन अपराधियों को लगाई जाती है हथकड़ी
अधिवक्ता मनोज मुद्गल बताते हैं कि हमारे देश का कानून यह कहता है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित शर्ते पूरा करने पर ही किसी व्यक्ति को हथकड़ी लगाई जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट के दो फेमस केस हैं जिनके आधार पर इस नियम को समझा जा सकता है। पहला केस है सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन,1978 और दूसरा केस है प्रेम शंकर शुक्ल बनाम दिल्ली प्रशासन 1980। दोनो केसेज में इस बारे में गाइडलाइन दी गई है।
1.केवल अजमानतीय (गंभीर) अपराध के मामलों में ही हथकडी लगाई जा सकती है।
2.यदि अभियुक्त का पहले कोई रेकॉर्ड रहा है या चरित्र रहा है कि वह हिंसक हो सकता है, लोक शन्ति भंग कर सकता है, तोड़ फोड़ कर सकता है, या गिरफ्तारी में रुकावट डाल सकता है।
3.वह सुसाइड कर सकता है या भाग सकता है, पुलिस से घिरे रहने के बावजूद भी।
4.और मान्य कारण होने पर न्यायिक अधिकारी के आदेश पर भी हथकडी लगाई जा सकती हैं।
पुलिस किसी को हथकड़ी लगाना चाहती है तो ये हो सकते हैं नियम
अगर पुलिस किसी को हथकड़ी लगाना चाहती है तो उसे युक्तियुक्त कारण बताते हुए संबंधित न्यायालय से पूर्व अनुमति लेनी होगी। यदि पुलिस बिना किसी कारण के किसी व्यक्ति को हथकड़ी लगाती है, तो यह उसके मौलिक अधिकार का हनन होगा। और यह कंटेम्ट आफ कोर्ट माना जा सकता है। माना जायेगा, इसपर उस अधिकारी को सजा मिलेगी। केवल गंभीर मामलों में ही गिरफ्तारी के समय हथकड़ी लगाया जा सकता है या ऐसा रिकॉर्ड है कि अपराधी भाग सकता है या आत्महत्या कर सकता है तो लिखित कारण देते हुए लिखित आर्डर देते हुए न्यायिक अधिकारी के आदेश पर हथकडी लगाई जा सकती है। साथ ही पुलिस डेली डायरी मेंटेन करेगी और हथकडी लगाने का कारण लिखेगी। यदि रुटीन कार्रवाई के दौरान हथकड़ी लगाई जाती है, तो यह मौलिक अधिकार के विरूद्ध होगा। कोट का यही कहना है कि किसी भी व्यक्ति को जानवरों की तरह नहीं बांधा जा सकता फिर चाहे वह कोर्ट ले जाने के दौरान हो या फिर इलाज के दौरान अस्पताल में ही क्यों नहीं हो। अधिवक्ता मुद्गल ने बताया कि हथकड़ी लगाना व्यक्ति के सेल्फ रेस्पेक्ट के विरूध होगा।