गौरतलब है कि हर माह में दो चतुर्थी आती हैं जोकि गणेश पूजा का समर्पित रहती हैं। दोनों चतुर्थी का अलग अलग महत्व है। माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है जबकि कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। विनायक चतुर्थी को वरद विनायक चतुर्थी भी कहते हैं। इस तरह अमावस्या के बाद वाली चतुर्थी विनायक चतुर्थी और पूर्णिमा के बाद वाली चतुर्थी संकष्टी चतुर्थी होती है।
मान्यता है कि विनायक चतुर्थी के दिन ही भगवान विनायक अर्थात गणेशजी का जन्म हुआ था। भाद्र माह की चतुर्थी गणेशजी का जन्म दिवस है। इसी वजह से चतुर्थी तिथि यानि चौथ के देवता शिवपुत्र गणेश ही माने जाते हैं। गणेश चतुर्थी के दिन विधि-विधान से भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने पर संकट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। विनायक चतुर्थी पर दोपहर में गणेश पूजा की जाती है।
फाल्गुन मास शुक्ल चतुर्थी तिथि 16 मार्च को 08:58 बजे से प्रारंभ हो चुकी है जोकि 17 मार्च को 11:28 बजे समाप्त होगी। ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई बताते हैं कि पूजा के लिए 17 मार्च को सुबह 11:17 से दोपहर 01:42 बजे तक शुभ मुहुर्त है। गणेशजी और बुध देव मुख्यत: व्यापार के कारक हैं। इस दिन व्रत रखकर मध्याह्न में गणेशजी की पूजा से घर में सुख-समृद्धि आती है और व्यापार वृद्धि भी होती है।