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वीआईपी मरीजों के लिए खोल डाले अलग सरकारी अस्पताल, कमाल की है इसकी सुंदरता

locationजयपुरPublished: May 07, 2022 09:56:31 am

Submitted by:

Vikas Jain

मासिक 70 हजार से एक लाख रूपए तक का वेतन पाने वाले कार्मिक भी इनकी सेवा में जुटे

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विकास जैन

जयपुर. राज्य के सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए आने वाले अति महत्वपूर्ण लोगों (वीआईपी) की तीमारदारी में सरकारी मेनपॉवर और संसाधनों का जमकर दुरूपयोग किया जा रहा है। मासिक 70 हजार से एक लाख रूपए तक का वेतन पाने वाले कार्मिक भी इनकी सेवा में जुटे हैं। अकेले जयपुर में इनकी संख्या करीब 20 और प्रदेश में करीब 50 बताई जा रही है। इनका सालाना वेतन करीब 5 करोड़ रूपए है। यह स्थिति तब भी कायम है, जब चिकित्सा मंत्री परसादीलाल मीणा डेपुटेशन खत्म कर मेनपॉवर के सदुपयोग का संदेश दे रहे हैं।
एसएमएस अस्पताल में ही करीब 22 करोड़ रूपए की लागत से दो साल पहले तैयार आधुनिक आईसीयू सुविधा युक्त संक्रामक रोग अस्पताल भी वीआईपी के लिए ही काम में लिया जा रहा है। कोरोना काल के दौरान यहां वीआईपी मरीजों का वैक्सीनेशन व कुछ मामलों में सिर्फ वीआईपी मरीजों को ही इलाज के लिए रखा गया। इसके अतिरिक्त करीब 25 करोड़ के संसाधन जयपुर सहित, अजमेर, जोधपुर व उदयपुर सहित अन्य बड़े शहरों के अस्पतालों में ऐसे मरीजों के लिए खपाए जा रहे हैं। वीआईपी सुविधाएं पाने वालों में मंत्री, विधायक, बड़े अधिकारी, विभिन्न राजनीतिक दलों के पदाधिकारी और नेताओं सहित बड़े कारोबार व अन्य क्षेत्रों के प्रभावशाली लोग शामिल हैं।
अस्पताल आने से लेकर डिस्चार्ज तक का जिम्मा

इनकी चाकरी के लिए लगाए जाने वाले ऐसे कार्मिक पर्ची, दवा, जांच, भर्ती जैसी सुविधाओं का जिम्मा संभालते हैं। अप्रत्यक्ष तौर पर कुछ संसाधन सिर्फ ऐसे मरीजों के लिए ही आरक्षित हैं, जहां प्रवेश ही वीआईपी मरीजों का संभव है। पूर्व चिकित्सा मंत्रियों के समय भी वीआईपी मरीजों की तीमादारी पर संसाधन झोंकने को लेकर विवाद सामने आ चुके हैं। कुछ डॉक्टर भी ऐसे हैं, जिनका जिम्मा सिर्फ मंत्री या अन्य वीआईपी कॉल पर इलाज करना या उसकी व्यवस्था करना है।
सीधे आईसीयू—कॉटेज की सुविधाएं

बड़े अस्पतालों में वीआईपी मरीज के अस्पताल पहुंचते ही सीधे आईसीयू या कॉटेज दे दिए जाते हैं। जबकि आम मरीजों को ऐसी सुविधाएं आसानी से नहीं मिलती। भर्ती होने के बाद सामान्य लोगों को आईसीयू की जरूरत होने पर भी पहले सामान्य वार्ड में ही भर्ती किया जाता है। वहां भी कई बरी चिकित्सक तक उन्हें आईसीयू नहीं दिला पाते। कई बार तो ऐसे मरीजों को सामान्य पलंग तक नहीं मिल पाता। बैंच, जमीन और बच्चों के अस्पतालों में तो एक ही पलंग पर दो बच्चों का उपचार करने के दृश्य भी सामने आ चुके हैं।
चिकित्सा मंत्री हेल्प डेस्क भी

कई अस्पतालों में चिकित्सा मंत्री हेल्प डेस्क है। इन्हें आम मरीजों की सेवा के लिए बताया जाता है, लेकिन यहां मुख्यतया ऐसे मरीजों की तीमारदारी की जाती है, जो मंत्री—विधायक या अन्य वीआईपी के यहां से सिफारिश लेकर आते हैं।
जयपुर : हर अस्पताल में वीआइपी जी हुजूरी

. एसएमएस : 11 नर्सिंगकर्मी और एक वार्ड ब्वॉय इन्हीें के लिए समर्पित है। जो राउंड द क्लॉक 24 घंटे जिम्मा संभालते हैं। एक कक्ष से वीआईपी की सुविधाओं की मॉनिटरिंग की जाती है।
. जनाना : 3 नर्सिंगसकर्मी फुल टाइम लगे हुए हैं।
. जयपुरिया : 2 महिला नर्सेज हैं।
. जेके लोन : वीआइपी मरीजों को सीधे इमरजेंसी के जरिये भर्ती कर इलाज सुनिश्चित कर दिया जाता है
. महिला अस्पताल: 2 नर्सिंग स्टाफ है।
. आरयूएचएस : कोरोना काल में यहां वीआईपी मरीजों के लिए कई कार्मिक जिम्मा संभाले हुए थे, आम मरीजों को तब पलंग नहीं मिले, जबकि इन्हें सीधे कमरे और आईसीयू दिए गए
वीआईपी की ऐसी सेवा :

जयपुर : दो साल से एसएमएस के संक्रामक रोग अस्पताल को आम मरीजों के लिए भले ही नहीं खोला गया, लेकिन कोरोना काल के दौरान यहां वीवीआईी मरीज और उनके रिश्तेदारों का इलाज किया गया
जोधपुर : डॉ.एस.एन मेडिकल कॉलेज अस्पताल में वीआईपी की तीमारदारी में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। यहां एक वीआईपी मरीज बीमार हुआ तो उनके लिए घर पर ही अस्पताल सजा दिया गया। कई मामले ऐसे भी हुए, जिनमें सीधे आईसीयू और कॉटेज दिए गए।
उदयपुर : मेडिकल कॉलेज अस्पताल में वीआईपी को हर सुविधा तत्काल उपलब्ध कराई जा रही है। अलग से स्टाफ की व्यवस्था की जाती है।

अजमेर : जेएलएन में हेल्प डेस्क बनाई हुई है, जिसमें चार नर्सिंग कर्मी लगाए हुए हैं।
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