सांस तक में कराया लय का अहसास उस्ताद जाकिर हुसैन अपने तबले के बोलों से श्रोताओं को जाहिर करा दिया कि लय सिर्फ संगीत और नृत्य में ही नहीं बल्कि हमारे चारों ओर है। उन्होंने सरपट भागती रेलगाड़ी, घोड़े के दौडऩे, बारिश की रिमझिम, बहती हुई नदी, सावन के झूले, समुद्र की लहरों आदि से अहसास करा दिया कि हमारे सांस तक में एक लय मौजूद है। कार्यक्रम में सबसे खास आकर्षण जाकिर हुसैन का बीच-बीच में श्रोताओं से संवाद करना रहा। उन्होंने सबसे पहले श्रोताओं को नए साल की मुबारकबाद दी और कहा कि एक कलाकार को अच्छा शार्गिद बनना चाहिए, कलाकार को कभी भी उस्ताद बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, क्योंकि शार्गिद बनकर कई चीजों को जिंदगीभर सीखा जा सकता है। उस्ताद जाकिर हुसैन की यह बात शहर की आवाम को रास आई। हालांकि यह बात सुनकर कुछ कलाकार अपनी बगलें झांकने लगे। इसके इतर जाकिर हुसैन ने शंख की ध्वनि को तबले में पिरोया तो श्रोताओं को मंदिर की आरती का आभास ही नहीं बल्कि यकीन भी कराया कि शंख और डमरू की ध्वनि कानों में किस प्रकार मिश्री घोलती है। जाकिर का कहना था कि शंख की यह आवाज पखावज के अंग से निकाली गई है। उन्होंने ताल लफ्ज का खूबसूरत उदाहरण देते हुए कहा कि तांडव का ‘तÓ और लास्य के ‘लाÓ से ही ताल बना है।
तबले के बोलों से प्रकट हुए राधा-कृष्ण के भाव कार्यक्रम के दौरान जब सांरगी वादक साबिर खान की धुन को सुनकर तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन तुरंत उसी धुन को तबले की ताल से निकाल कर दिखाया तो श्रोताओं का आनंद दोगुने से भी अधिक हो गया। एेसे में दर्शकों को चमत्कार का अनुभव तब हुआ जब जाकिर हुसैन ने राधा-कृष्ण के संवादों के भाव भी तबले की लय से प्रकट किए। इससे पूर्व श्रुतिमंडल परिवार की ओर से उस्ताद जाकिर हुसैन का सम्मान किया गया और पद्मश्री प्रकाश सुराना के नाम की छात्रवृति की घोषणा की गई।