दुषित हवा ने घेर लोगों को बीमारियों से किया ग्रसित जयपुर के अस्थमा, एलर्जी व श्वांस रोग विशेषज्ञों की मानें तो शहर में चारदीवारी और औद्योगिक क्षेत्रों के आस पास सर्वाधिक प्रदूषण है जिनके कारण लोगों का जीना मुश्किल हो चुका है। प्रदूषण से धूल के कण फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं। इसके चलते हृदय रोग, फैफडों का कैंसर व अस्थमा तेजी से बढता है। वाहनों के धुएं में सल्फरडाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड और श्वांस के साथ अंदर जाने वालीे रेसपिरेबल पार्टिक्यूलेट मैटर (आरपीएम) होते हैं। यही प्रदूषण फैलाते हैं और गंभीर बीमारियों का कारण बनते हैं।
मानकों में ये आया सामने प्रदूषण के लिए माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (पीएम) 2.5 और पीएम 10 को मापा गया। मानको के अनुसार पीएम 2.5 वायु में 20 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। देश में प्रदूषण मानक के अनुसार 40 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। लेकिन जयपुर में यह 100 मिला है। दुनिया में एक दशक के दौरान घर के अंदर और बाहर प्रदूषण के कारण होने वाली मौत चार गुना बढ जाएगी।
इस तरह बढ़ रहा प्रदूषण प्रदूषण का बड़ा कारण वातावरण में नाइट्रोजन और सल्फरडाई ऑक्साइड बढऩा है। इनके लिहाज से मानक काफी नीचे हैं। लेकिन दोनों की ही मात्रा बढ़ रही है। यहां सल्फरडाई ऑक्साइड का मानक स्तर 80 मिलीग्राम प्रति घन मीटर है। सल्फरडाई ऑक्साइड का स्तर 25 से 45 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच रहा है।
शहर में फैलता प्रदूषण, सिकुड़ता जीवन 15 लाख वाहनों की रेलमपेल हर रोज सड़कों पर दौड़ती है। शहर की सड़कों पर 50 लाख वाहन पांच सालों में शहर में बढ़े हैं। 4 लाख लोग हर दिन बाहरी क्षेत्र से आते हैं। शहर में 15 लाख माइग्रेटेड आबादी रह रही है। शहर में 25 फीसदी तक बढ़े मरीज अस्थमा और सीओपीडी के मरीजों के लिए तो यह प्रदूषण दस गुना अधिक घातक साबित हो रहा है। शहर में अस्थमा, दमा और एलर्जी विशेषज्ञों के पास सीओपीडी के मरीजों की संख्या में तो बीते कुछ सालों में ही करीब 25 फीसदी तक इजाफा हो गया है। जितने मरीज पहुंच रहे हैं उनमे से करीब 50 से 70 फीसदी की हिस्ट्री ऐसे इलाकों के नजदीक ही निवास की देखी जा रही है।
प्रदुषण ने लोगों के फेफड़ों को किया छलनी एलर्जी विशेषज्ञ डॉ एम.के गुप्ता के अनुसार प्रदूषण के कारण सीओपीडी बीमारी मौत का तीसरा कारण बन गई है। चिंताजनक तथ्य यह है कि इस बीमारी का समय पर उपचार नहीं लेने पर हृदय रोग, डायबिटीज, पल्मोनरी, हाइपरटेंशन, ओस्टियोपोरोसिस, ब्रोंकाइटिस, डर्मेटाइटिस जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। इससे औसत आयु में कमी के साथ ही गुणवत्तापूर्ण जीवन स्तर में भी कमी आ रही है। वाहन प्रदूषण का असर इन पर अधिक सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज के अस्थमा एवं श्वांस रोग विशेषज्ञ डॉ नरेन्द्र खिप्पल के अनुसार अस्पताल में आ रहे मरीजों में से अधिकांश लगातार प्रदूषण के संपर्क वाले हैं। इनमे कारखानों में काम करने वालों सहित दुपहिया वाहन पर चलने वाले भी अधिक हैं।