उसका जन्म 24 सप्ताह में ही हो गया था, जन्म के समय उसका वजन मात्र 350 ग्राम था, दिखने में कोल्ड ड्रिंक के केन जितनी थी, उसके हाथ के आगे एक डॉलर का सिक्का भी बड़ा था, डॉक्टर्स ने कहा उसके बचने की संभावना सिर्फ पांच प्रतिशत है। डॉक्टर्स ने इसी पांच प्रतिशत की उम्मीद के बल पर इसाबेला इवांस का इलाज शुरू किया, माता-पिता ने दिन-रात उसके लिए प्रार्थना की और आखिरकार छह महीने के इलाज के बाद इसाबेला अपने परिवार के साथ घर गई है और आज वो एक सामान्य बच्चे का जीवन जी रही है।
किसी चमत्कार से कम नहीं
इसाबेला के मां किम ब्राउन और पिता रयान इवांस बेटी के घर आने से बेहद खुश हैं। उनका कहना है कि यह किसी चमत्कार से कम नहीं था। कई बार एेसे दिन भी आए जब हम सबने उसके जीने की उम्मीद छोड़ दी थी, लेकिन इसाबेला ने जिंदगी की जंग लडऩा बंद नहीं किया और आखिरकार वो जीत गई। किम ने बताया कि इसाबेला का जन्म दिसंबर 2018 में हुआ था। गर्भावस्था के 21वें सप्ताह में किम को पता चला कि उन्हें प्री-एक्लेमप्सिया है, जो मां और बच्चे दोनों के लिए ही घातक है। इसाबेला का विकास होना बंद हो गया था और उसकी ह्रदय गति लगातार घट रही थी। एेसी स्थिति में डॉक्टर्स को सिजेरियन ऑपरेशन करना पड़ा। रयान ने बताया कि इसाबेला को जन्म के समय से ही सांस लेने में परेशानी हो रही थी, इसलिए उसे बबल रैप में रखा गया। तीन हफ्ते बाद डॉक्टर्स को पता चला कि उसकी आंत में छेद है और उसके दो ऑपरेशन करने पड़े। साथ ही उसकी आंखों की लेजर सर्जरी भी करवानी पड़ी। जब इसाबेला तीन महीने की हुई तो उसने पहली बार कपड़ा पहना वो भी तब जब धोने से वो सिकुड़ गया था। लेकिन आज वो सामान्य बच्चों की तरह जीवन जी रही है। उसे खाने में पनीर और सेंडविंच बेहद पसंद है। घर लौटते समय इसाबेला का वजन करीब छह किलो हो गया था।