scriptजानिये आखिर ऐसा क्या हुआ कि डॉक्टर बोले- “सुविधाएं कम, इसलिए होती हैं हड़तालें” ? | What happened that the doctor said - | Patrika News

जानिये आखिर ऐसा क्या हुआ कि डॉक्टर बोले- “सुविधाएं कम, इसलिए होती हैं हड़तालें” ?

locationमिर्जापुरPublished: Mar 11, 2017 10:33:00 am

Submitted by:

rajesh walia

आमजन को उपलब्ध कराई जाने वाली उपचार सुविधाओं की रीढ़ डॉक्टर हैं, जिन्हें मरीजों का भगवान कहा जाता है। लेकिन, यही भगवान आए दिन मरीज को अपने हाल पर छोड़कर हड़ताल पर उतर जाता है।

doctors strike

doctors strike

आमजन को उपलब्ध कराई जाने वाली उपचार सुविधाओं की रीढ़ डॉक्टर हैं, जिन्हें मरीजों का भगवान कहा जाता है। लेकिन, यही भगवान आए दिन मरीज को अपने हाल पर छोड़कर हड़ताल पर उतर जाता है। कभी जयपुर में, कभी जोधपुर में। कभी एक संवर्ग, तो कभी दूसरा। 
एक दिन पहले मेडिकल टीचर्स सामूहिक इस्तीफे देकर हड़ताल पर उतरे तो चिकित्सा मंत्री कालीचरण सराफ ने कहा, सरकार से पहले बात तो कर लेते। इसी सन्दर्भ में राजस्थान ने शुक्रवार को पड़ताल की कि आखिर डॉक्टरों की पीड़ा क्या है। ऐसा क्या दर्द है, जो सरकार तक पहुंच नहीं रहा या सरकार सुन नहीं रही। 
इसके लिए राजस्थान पत्रिका ने डॉक्टरों के विभिन्न संवर्गों से बात की तो उन्होंने कई व्यवस्थागत खामियां गिनाई। यह जरूरत जताते हुए कि सरकार को इन पर ध्यान देकर निराकरण करना चाहिए। 

बोझ तले अस्पताल, डॉक्टरों की कमर 
पड़ताल में सामने आया कि मेडिकल कॉलेजों में कार्यरत मेडिकल टीचर्स व रेजीडेंट, छोटे अस्पतालों में सेवारत डॉक्टरों पर काम का भारी बोझ है। एक-एक डॉक्टर मरीजों का भारी दबाव झेल रहा है। काम और मरीजों के बढ़ते बोझ, इमरजेंसी सेवा के बावजूद डॉक्टरों के वेतन में भारी विसंगतियां हैं। जबकि, बड़े अस्पतालों को रेफरल बनाकर इस भार को आसानी से विभाजित किया जा सकता है। 
मैनपावर ठेके पर

बड़े मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में अधिकांश मैनपावर ठेके पर है। ठेकेदारों पर शोषण का आरोप लगाकर आए दिन ये कर्मचारी भी हड़ताल करते हैं। जबकि अस्पताल आरएमआरएस से इन्हें सीधे रखकर समस्या दूर कर सकते है। 
मेडिकल टीचर्स इसलिए असंतुष्ट

नॉलेज अपग्रेडेगेशन के लिए कांफ्रेंस में जाने को सरकार 275 रुपए प्रति माह देती है जबकि 20 से 25 हजार रुपए खर्च होते है । नॉलेज अपग्रेडेगेशन के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं मिलते। सरकार महंगे उपकरण खरीदने से बचती है जबकि निजी अस्पताल तुरन्त खरीदते है। इससे आधुनिक उपचार के ज्ञान में सरकारी मेडिकल कॉलेजों के टीचर पीछे रह जाते है । 
सरकारी मेडिकल कॉलेजों में ऑपरेशन थियेटरों का अपग्रेडेशन तक समय पर नहीं होता केन्द्र में जितना हायर एडमिनिस्ट्रेशन ग्रेड एचएजी मिलता है, यहां उससे कम है सीनियर डेमोस्ट्रेटर को न तो चिकित्सा अधिकारी, न ही मेडिकल टीचर माना जाता है। उन्हें इन संवर्गों की तरह पदोन्नति नहीं मिलती।
(जेएमए के अध्यक्ष और सीनियर मेडिकल टीचर डॉ. राकेश जैन के अनुसार)

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो