रणथंभौर टाइगर रिजर्व में हाल में बाघ के दो शावक और गत दिनों एक अन्य बाघ की मौत से प्रदेश में खलबली मची हुई है। इसके अलावा सरिस्का में एक बाघ का शिकार तथा एक अन्य गायब चल रहा है। इसी तरह गत तीन महीनों के दौरान जयपुर के झालाना समेत प्रदेशभर में करीब 8 बघेरों की मौत विभिन्न कारणों से हो चुकी है। उधर, वन विभाग के गत पांच वर्षों के क्रिया कलापों पर नजर डालेंगे तो वन्य जीव संरक्षण के नाम पर कोई अहम काम नहीं दिखेगा। इस दौरान विभाग जंगल से गांवों को खाली तो करा नहीं सका, बल्कि पर्यटन के नाम पर जंगलों में मानवीय गतिविधियां जरूर बढ़ा दी। वहीं विभागीय अफसरों की मॉनीटरिंग में सही तरीके से नहीं होने के चलते शिकारियों का आना-जाना भी जंगलों में अधिक हो गया है।
यह है हाल है गांव विस्थापन योजना सरिस्का, रणथंभौर और मुकुंदरा टाइगर रिजर्व में गांव विस्थापन का कार्य अत्यंत धीमा है। गत एक वर्ष के दौरान सरिस्का से सिर्फ दस परिवार और रणथंभौर से 16 परिवार ही शिफ्ट किए जा सके हैं। जबकि सरिस्का में अंतिम बार 2012-13 में 3 गांव और रणथंभौर में अंतिम बार 2015-16 में कठूली गांव को पूर्ण रूप से खाली कराया गया था। ऐसे में गांव विस्थापन के लिए सरकार की ओर से दिए जा रहे करोड़ों रुपए खर्च ही नहीं हो पा रहे हैं।
दो साल में मिले 90 करोड़ से अधिक प्रदेश के तीनों टाइगर रिजर्व के लिए सरकार ने गत तीन वर्षों में वन विभाग को 90 करोड़ रुपए से अधिक की राशि उपलब्ध कराई। इसमें से सिर्फ निर्माण कार्यों पर राशि खर्च की गई, जबकि गांव विस्थापन नहीं होने से उस मद की अधिकांश राशि खर्च ही नहीं सकी।