कहां गई क्लाइमेट चेंज को लेकर गंभीरता
जयपुरPublished: Dec 26, 2019 12:29:33 am
बेनतीजा खत्म हो गया कॉप-25 सम्मेलन कई देशों ने गैर जरूरी मानकर किया खारिज
कहां गई क्लाइमेट चेंज को लेकर गंभीरता
जयपुर।
जयपुर।
2020 से जलवायु परिवर्तन के लिए अहम 2015 के पेरिस समझौते को लागू करने की कोशिशों के तहत कॉप-25 का नारा था- ‘टाइम फॉर एक्शन, पर अफसोस कि यह सम्मेलन एक्शन के मोर्चे पर ही विफल रहा। ये हालात तब हैं जब पूरी दुनिया बढ़ते तापमान, सूखे, तबाही लाते तूफानों, भीषण बर्फबारी और अतिशय बाढ़-बारिश आदि मौसमी वजहों से प्रभावित हो रही है। खुद इंसान के लिए इन प्राकृतिक मौसमी बदलावों से जीना मुहाल हो गया है। लेकिन आबोहवा सुधार की कोशिशों को सिरे चढ़ाने की बात किसी के जेहन में नहीं अटक रही है। स्पेन की राजधानी मैडिड में दो सप्ताह से ज्यादा लंबे चले जलवायु परिवर्तन सम्मेलन- कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (कॉप-25) से उम्मीदें तो बहुत थीं, पर उसका बिना किसी नतीजे खत्म हो जाना पर्यावरण को लेकर दुनिया की संजीदगी का स्तर साबित करने को काफी है।
जलवायु बदलावों पर हम कितने गंभीर हैं, यह इससे पता चलता है कि इस वर्ष पहले यह सम्मेलन (कॉप-25) चिली के सेंटियागो में आयोजित होना था, जो अपने यहां हो रहे विरोध प्रदर्शनों का तर्क देकर इसकी मेजबानी से हट गया। संयुक्त राष्ट्र की नाक बचाने को मजबूरन इसे स्पेन के मैडिड में आयोजित कराना पड़ा। जलवायु परिवर्तन की वजह से दांव पर लगी सभ्यता को बचाने के उपायों और विकल्पों को ही कई देशों ने गैर जरूरी मानकर खारिज कर दिया। इन उपायों को लेकर विकसित देशों ने तो और भी निराशाजनक प्रतिक्रिया दी।
उन्होंने जलवायु आपातकाल की अभूतपूर्व स्थितियों से निपटने के लिए कार्बन उत्सर्जन करने की अपीलों पर ध्यान देना ही उचित नहीं समझा। कुल मिलाकर इस सम्मेलन का हश्र क्या हुआ, यह ग्रेनाडा के राजदूत सिमोन स्टील के बयान से पता चल गया। सिमोन ने कहा कि पेरिस संधि के प्राविधानों को कायम रखने के लिए प्रत्येक क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस को एक अवसर के रूप में देखा जाता है।
मैडिड में ही जर्मन वॉच, न्यू क्लाइमेट इंस्टीट्यूट एंड क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क की ओर से संयुक्त रूप से पेश जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (सीसीपीआइ) की रैंकिंग में भारत पहली बार शीर्ष दस देशों में शामिल हुआ है। इस सूची में पिछले वर्ष भारत का मुकाम 11वां था, जबकि नई सूची में वह नौवें स्थान पर आया है। यह संकेत है कि भारत में जलवायु परिवर्तन को एक आसन्न संकट मानने की एक समझ बनने लगी है।
हालांकि भारत इसे लेकर सहमत है कि वह वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में मौजूदा दर से एक तिहाई कमी ला देगा। इसके लिए कोयले से चलने वाले पावर प्लांटों में बिजली उत्पादन घटाकर जलविद्युत परियोजनाओं पर निर्भरता बढ़ाई जाएगी। हालांकि चावल की खेती और मवेशी जनित ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना भारत के लिए चुनौती है, पर जिस तरह से एक सूचकांक- सीसीपीआइ में हमारे देश की रैंकिंग सुधरी है, उससे भारत से तो एक उम्मीद जगी है।