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आजादी की लड़ाई हो या और कोई, जनता ही होती हीरो

locationजयपुरPublished: Aug 10, 2023 12:21:55 am

Submitted by:

Mohmad Imran

जयपुर। 'आज गांधी जी के विचारों को अपनाने की बहुत जरूरत है। आजादी की लड़ाई सांप्रदायिकता का विरोध और जातिवाद का विरोध जैसे मूल्यों पर टिकी थी। उन मूल्यों पर आज लगातार हमले हो रहे हैं।' यह कहना है लेखक और इतिहासकार अशोक कुमार पांडे का। वह बुधवार को भारत सेवा संस्थान और महात्मा गांधी इंस्टीटूट ऑफ गवर्नेंस एंड सोशल साइंसेज की ओर से सेंट्रल पार्क में आयोजित 'अगस्त क्रांति के प्रमुख नायक' विषय पर प्रमुख वक्ता के रूप में बोल रहे थे।

आजादी की लड़ाई हो या और कोई, जनता ही होती हीरो
आजादी की लड़ाई हो या और कोई, जनता ही होती हीरो

पांडे ने कहा कि वर्ष अंग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन हो या कोई और आन्दोलन, उसके असली नायक देश की जनता होती है। कोई भी आन्दोलन उनकी सक्रिय भागीदारी के बिना पूरा नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि अगस्त क्रांति हो या आजादी का आन्दोलन, अगुवाई करने में गांधी, नेहरू और पटेल जैसे नाम हो सकते हैं लेकिन महत्वपूर्ण वे लोग हैं जिनकी वे अगुवाई कर रहे थे। 9 अगस्त, 1942 के दिन महात्मा गांधी ने 'अंग्रेजों भारत छोड़ो] का नारा दिया था, जो आंदोलन 1947 तक चला। आज गांधी जी के विचारों को अपनाने की बहुत जरूरत है। आजादी की लड़ाई सांप्रदायिकता का विरोध और जातिवाद का विरोध जैसे मूल्यों पर टिकी हुई थी, जिन पर बाद में हमारे लोकतंत्र की स्थापना हुई, उन मूल्यों पर आज लगातार हमले हो रहे हैं। इस पूरे आंदोलन में सिर्फ नायक ही नहीं बल्कि जनता की जो भागीदारी थी, उसे भी जेहन में याद रखे जाने की जरूरत है।' सुबह 11 बजे शुरू हुए कार्यक्रम में पांडे ने गांधी, आजादी के नायकों, संविधान और वर्तमान राजनीतिक परिवेश के संदर्भ में महत्वपूर्ण बातें कहीं। उन्होंने कहा कि भारत में जनता ही असली नायक है। जनता ही भारत के सामाजिक, साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए पहल करती है। इसमें दलित, आदिवासी महिलाएं सभी शामिल हैं। संविधान सबके सम्मान, अधिकार पर केन्द्रित है, तभी देश किसी एक का नहीं बल्कि सबका है। इतिहास की समझ केवल अतीत को जानने की नहीं, बल्कि भविष्य को बुनने के लिए भी आवश्यक है। इतिहास कब्रिस्तान की सैर नहीं है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भारत सेवा संस्थान के सचिव जी एस बाफना और महात्मा गांधी इंस्टीटूट ऑफ गवर्नेंस एंड सोशल साइंसेज के निदेशक डॉ. बी.एम. शर्मा थे।

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