आपको बता दें कि इससे पूर्व ९ और १० जून को बायो पार्क में बिग कैट फैमिली के दो सदस्यों की मौत हो गई थी। टाइगर रूद्र की ९ जून को मौत हो गई थी और अगले ही दिन १० जून को शेर सिद्धार्थ की मृत्यु हो गई। दोनों में एक ही बीमारी के लक्षण मिले थे। उन दोनों ने भी इसी तरह से खाना पीना बंद कर दिया था जिस प्रकार से राजा ने पिछले कुछ दिनों से किया हुआ था। उन दोनों की मौत की वजह लेप्टोस्पायरोसिस नामक बीमारी को माना गया था जो कि चूहों और नेवलों के पेशाब से होती है। दोनों के सैम्पल आईवीआरआई बरेली भेजे गए थे जहां से अब तक उनकी रिपोर्ट नहीं आई है।
पहला मामला नहीं
आपको यह भी बता दें कि राजा से पूर्व भी यहां कई वन्यजीवों की मौत हो चुकी है। गत वर्ष 19 सितंबर को शेरनी सुजान, 21 को शावक रिद्धि और 26 सितंबर को सफेद बाघिन सीता की मौत हो गई थी। इसके बाद ९ और १० जून को रुद्र और सिद्धार्थ की मौत हुई। शेरनी तेजिकी की मौत भी नाहरगढ़ बायो पार्क में हुई थी और उसकी मौत की वजह लकवे को माना गया। सफेद बाघिन रंभा और उसके दोनों शावक भी इस प्रकार मृत्यु को प्राप्त हुए थे।
संदेह में चिकित्सकों की भूमिका
जिस तरह जानवरों की मौत हो रही है उसको देखते हुए यहां डॉक्टर की भूमिका और मॉनिटरिंग पहले से ही सवालों में हैं। न केवल नाहरगढ़ बायो पार्क बल्कि प्रदेश के अन्य टाइगर रिजर्व में लगातार हो रही वन्यजीवों की मौत को लेकर वन विभाग लगातार लीपापोती करने में लगा हुआ है। किसी भी अधिकारी पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। इससे पूर्व जब सफेद बाघिन रंभा और उसके दोनों शावकों की मौत हुई थी, उस समय भी कोई कार्रवाई नहीं की गई थी।
आपको बता दें कि देश में वैसे ही सफेद बाघों की संख्या काफी कम है। एक लाख बाघ में एक ही सफेद बाघ पैदा होता है। नाहरगढ़ बायो पार्क में राजा से पूर्व सफेद बाघिन रंभा और उसके दोनों शावकों की मौत भी हो चुकी है। राजा की मौत के साथ ही प्रदेश में अब एक भी सफेद बाघ नहीं बचा है।