जनरल रावत के हेलिकॉप्टर ने 32 मिनट की उड़ान पूरी भी कर ली थी। सबकुछ तय वक्त पर था। लैंडिंग के लिए सिर्फ 90 सेकेंड का वक्त बचा था, वो अपनी डेस्टिनेशन से सिर्फ दस किलोमीटर की दूरी पर थे। उसी वक्त अनहोनी हो गई। कुन्नूर के जंगलों में जनरल रावत का MI 17 V5 हेलीकॉप्टर क्रैश हो गया। यानी अगर 90 सेकेंड और निकल जाते, तो सीडीएस रावत बच जाते। वो आज हमारे बीच होते, लेकिन होनी को कुछ और मंजूर था। इस हेलीकॉप्टर में जनरल रावत के साथ उनकी पत्नी मधूलिका रावत भी मौजूद थीं। ब्रिगेडियर एल एस लिद्दर, लेफ्टिनेंट कर्नल हरजिंदर सिंह भी साथ में ही उड़ान भर रहे थे। कुछ पर्सनल सिक्योरिटी अफसर भी शामिल थे। कुल मिलाकर 14 लोग थे, लेकिन हेलीकॉप्टर क्रैश होने के बाद उसमें आग लग गई।
जहाँ पर जनरल रावत का हेलिकॉप्टर क्रैश हुआ वहाँ से 10 किलोमीटर की दूरी पर बने वेलिंगटन में हेलिपैड था। यहीं हेलिकॉप्टर को लैंड करना था। हेलिपैड पर तमिलनाडु पुलिस का महकमा तैनात था। गौर करने की बात ये है कि हेलिकॉप्टर को गिरते हुए देखने वाला एक चश्मदीद और दुर्घटनास्थल पर पहुँचने वाले एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि मौसम साफ़ था और बादल नहीं थे।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक चश्मदीद ने देखा कि हेलिकॉप्टर बहुत कम ऊंचाई पर उड़ रहा था। अचानक से यह मुड़ा और शायद कटहल के पेड़ से टकरा गया। इसके बाद तेज़ धमाका हुआ। जब हेलिकॉप्टर क्रैश हुआ तब मौसम साफ़ था। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि हेलिकॉप्टर इतनी कम ऊंचाई पर क्यों उड़ रहा था? क्या पायलट को एयर ट्रैफिक कंट्रोल या आर्मी कंट्रोल से मौसम को लेकर कोई अलर्ट था? पूरे मामले की जाँच हो रही है। पर जाँच से क्या कुछ सामने आएगा?
जो हेलिकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हुआ, उसे भारतीय वायुसेना में काफ़ी भरोसेमंद और सुरक्षित माना जाता है। रूस में बना Mi-17V5 का इस्तेमाल भारतीय वायुसेना में ऊंची उड़ान वाले अभियान और राहत बचाव कार्य में आम बात है। Mi-17V बहुत ही विश्वसनीय चॉपर है। उत्तराखंड जैसे राज्यों में ऊंचाई पर राहत बचाव कार्य के लिए इसका इस्तेमाल अक्सर होता है। वेलिंगटन जाने के लिए जनरल रावत ने जिस हेलिकॉप्टर का चुनाव किया था, वो बिल्कुल सही था।
MI-17हेलिकॉप्टर आधुनिक एवियोनिक्स से लैस है। जब कम विजिबिलिटी हो तो बादलों के नीचे होने की स्थिति में लैंडिंग मुश्किल होती है। जिस तरह से पेड़ टूटे हैं, उनकी तस्वीर देख लगता है कि रोटर्स क्षतिग्रस्त हुआ था। कम ऊंचाई वाली उड़ान में जब गति धीमी हो जाती है तो उसे फिर से तेज़ करना बहुत मुश्किल होता है। यह हेलिकॉप्टर फुल अथॉरिटी डिज़िटल इलेक्ट्रॉनिक कंट्रोल से लैस था। अगर पायलट इंजन पर ज़्यादा ज़ोर भी डालता तो एफएडीईसी इसे रोक देता। इस मामले में आंतरिक सैन्य जाँच होगी और हमें इसकी पूरी कहानी शायद कभी पता नहीं चलेगी।
अब सबके मन में सवाल यही है कि इतना भरोसेमंद समझा जाने वाला हेलिकॉप्टर जिसमें भारत की सीडीएस जनरल रावत उड़ान भर रहे थे और जिसे ग्रुप कैप्टन पीएस चौहान और स्क्वाड्रन लीडर कुलदीप जैसे बेहद अनुभवी पायलट उड़ा रहे थे वो क्रैश कैसे हो गया? क्या इसका जवाब देश को कभी मिल पाएगा?
कारण जो भी हो, लेकिन ये तो साफ है कि हेलिकॉप्टर की गुणवत्ता या पायलट की क्षमता पर कोई सवाल नहीं है। सूलूर और वेलिंगटन दोनों ही सैन्य संस्थान ही हैं, इसलिए बाहरी छेड़छाड़ा संभव नहीं दिखता। ओवरलोड का भी सवाल नहीं है क्योंकि इस हेलिकॉप्टर की पेलोड क्षमता 4000 किलो है और इसमें 24 लोग बैठ सकते हैं। इस तरह कोई आंतरिक कारण नजर नहीं आता, तो फिर क्या रहा बाहरी कारण? इंतजार पूरे देश को है।