क्यों न तेंदुए के लिए बेहतर प्रबंधन पर मंथन किया जाए?
जयपुरPublished: Dec 15, 2019 11:20:34 pm
कई बार इनको भूख मिटाने के लिए शहर में भी दस्तक देनी पड़ रही है
हर्षवर्धन, वन्यजीव विशेषज्ञ,हर्षवर्धन, वन्यजीव विशेषज्ञ
-शहर के समीप 20 वर्ग किमी. क्षेत्र में बसे झालाना जंगल में तेंदुए की संख्या गत 5 वर्ष में दोगुनी हो गई है। शहर में इनकी घुसपैठ भी लगातार बढ़ रही है। इसका मुख्य कारण जंगल में इनके प्राकृतिक भोजन व्यवस्था पर संक ट है, क्योंकि यहां चीतल की कमी है। जिसके चलते यह बंदर, मोर या चूहों को अपना शिकार बना रहे है। कई बार इनको भूख मिटाने के लिए शहर में भी दस्तक देनी पड़ रही है। यहां आकर वह कुत्तों का शिकार कर रहे है। वो भी इनके लिए आसान नहीं है। देखा जाए तो एक तेंदुए को हर दूसरे-तीसरे दिन एक कुत्ते का शिकार बनाना पड़ता है। यहां लगभग 30 तेंदुए है। उन्हें शहर में सालाना 3 हजार से अधिक कुत्तों की आवश्यकता होगी। ऐसे में सरकार व विभाग को इसके भोजन के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। सकारात्मक पहलुओं के साथ शहर में आए ‘दंगईÓ तेंदुए को पकड़कर कहां छोड़ा जाए, जैसी समस्याओं का समाधान लेपर्ड प्रोजेक्ट में होना चाहिए। पर्यटन के लिए सफल यह प्रयोग खुद तेंदुए के लिए समस्या बनता हुआ प्रतीत हो रहा है। वहीं दूसरी ओर तेंदुए की संख्या को नियंत्रण में रखने के लिए अब समय आ गया है। इस वन्यजीवों का परिवार भी नियोजन किया जाए। ऐसा हो कि, सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटे। वन मंत्रालय ने कुछ वन्यजीवों की संख्या नियंत्रित करने के लिए दो उपाय राज्यों को सुझाए हैं। एक तो नियंत्रित रूप से इनका शिकार कराया जाए और इस बाबत में लाइसेंस भी जारी किए जाए। दूसरा नीलगाय जैसे खेती को नुकसान पहुंचाने वाले वन्यजीवों का परिवार नियोजन किया जाए। तेंदुआ भी इस श्रेणी में क्यों नहीं शामिल किया गया है। मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक ही इन दोनों प्रक्रियाओं को आगे बढ़ाने के लिए सक्षम अधिकारी हैं। इनकी ओर से राजस्थान में कोई नया निर्णय अभी तक नहीं लिया जा सका है। इसके अलावा तेंदुए के बेहतर प्रबंधन के लिए कैमरा ट्रैप व रेडियोकॉलर जैसी तकनीक इस्तेमाल करने की जरूरत है।