क्वालिटेटिव जनमत हो अहम
लोकतंत्र भले ही आंकड़ों का खेल है। जिसके पास ज्यादा वोट वो ही विजेता। लेकिन क्या ये असल जनमत का प्रतीक है। क्वालिटेटिव जनमत भी काउंट होना चाहिए। भारतीय राजनीति में कुछ संगठनों और व्यक्तियों के द्वारा बदलाव की पहल की गई। शुरुआत में लोगों का समर्थन भी मिला लेकिन इनमें से अधिकांश नंबर गेम में हार गए। बदलाव का प्रयास करने वालों के क्वालिटेटिव वोट्स कहीं काउंट ही नहीं पाए।
लोकतंत्र भले ही आंकड़ों का खेल है। जिसके पास ज्यादा वोट वो ही विजेता। लेकिन क्या ये असल जनमत का प्रतीक है। क्वालिटेटिव जनमत भी काउंट होना चाहिए। भारतीय राजनीति में कुछ संगठनों और व्यक्तियों के द्वारा बदलाव की पहल की गई। शुरुआत में लोगों का समर्थन भी मिला लेकिन इनमें से अधिकांश नंबर गेम में हार गए। बदलाव का प्रयास करने वालों के क्वालिटेटिव वोट्स कहीं काउंट ही नहीं पाए।
अब जनता की बारी है
सुप्रीम कोर्ट ने तो आदेश दे दिया है कि अखबार और अन्य प्रचार माध्यमों से ये प्रचार किया जाए कि अमुक उम्मीदवार के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं। एक नहीं तीन बार। राजनीतिक दल अपनी वेबसाइट पर भी ये घोषणा करें कि अमुक उम्मीदवार दागी है। लेकिन ये जनता के पास अधिकार है कि ऐसे दागियों को करारा सबक सिखाए। क्योंकि वोट का बटन दबाने का अधिकार तो जनता के पास सुरक्षित है।
सुप्रीम कोर्ट ने तो आदेश दे दिया है कि अखबार और अन्य प्रचार माध्यमों से ये प्रचार किया जाए कि अमुक उम्मीदवार के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं। एक नहीं तीन बार। राजनीतिक दल अपनी वेबसाइट पर भी ये घोषणा करें कि अमुक उम्मीदवार दागी है। लेकिन ये जनता के पास अधिकार है कि ऐसे दागियों को करारा सबक सिखाए। क्योंकि वोट का बटन दबाने का अधिकार तो जनता के पास सुरक्षित है।